नई दिल्ली: शाहीन बाग जैसे धरनों को ध्यान में रखते हुए शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में बुधवार को कहा कि किसी निर्धारित जगह पर धरना-प्रदर्शन किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि लोगों को असहमति रखने और प्रदर्शन करने का अधिकार है लेकिन इस तरह के धरना-प्रदर्शन से किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए।
न्यायमूर्ति एस के कौल की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्चितकाल तक कब्जा नहीं किया जा सकता, जैसा कि शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन के दौरान हुआ।
बता दें कि सीएए के खिलाफ शाहीन बाग में करीब 100 दिनों तक धरना चला। सड़क पर जारी धरने की वजह से करीब तीन महीने तक सड़क बाधित रही और इसके चलते लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा।वहीं अध्यक्ष शाहीन बाग मार्केट एसोसिएशन डॉ.नसीर ने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं, 200 दुकानों को बंद कर दिया गया था और 2000 कर्मचारी बेरोजगार थे। सभी दुकानें ब्रांडेड वस्तुओं की हैं। हमें करोड़ों का नुकसान हुआ है।
पिछली सुनवाई में जस्टिस एसके कौल, जस्टिस अनिरूद्ध बोस एवं जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था उस समय पीठ ने कहा, 'हमें सड़क को बाधिक करने और प्रदर्शन के अधिकार के बीच एक संतुलन लाना होगा। एक संसदीय लोकतंत्र में धरना एवं प्रदर्शन संसद एवं सड़क पर हो सकते हैं लेकिन सड़क पर यह शांतिपूर्ण होना चाहिए।'
यहां का विरोध प्रदर्शन देश भर में सीएए की खिलाफत का एक प्रतीक बना। इसी की तर्ज पर देश भर में अलग-अलग जगहों पर धरने आयोजित किए गए। शाहीन बाग में धरने का नेतृत्व मुस्लिम समाज की महिलाओं ने किया। धरने में शामिल लोग सरकार से सीएए को वापस लेने की मांग कर रहे थे।
मुस्लिम समाज को आशंका है कि सीएए कानूनों के बाद सरकार देश में एनआरसी की प्रक्रिया शुरू कर सकती है और उनसे अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कहा जा सकता है। हालांकि, सरकार ने बार-बार कहा है कि सीएए कानून नागरिकता छीनने के लिए बल्कि नागरिकता देने के लिए लाया गया है। शाहीन बाग का धरना खत्म कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी भी लगाई गई थी।
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