मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले की भील कलाकार भूरी बाई को पद्म श्री से सम्मानित किया गया है। भूरी बाई को कला के क्षेत्र में उत्कृष्ठ कार्य करने के लिए पद्म श्री दिया गया है। भूरी आदिवासी समुदाय से आती हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उनके लिए लिखा, 'भील कला को अपनी चित्रकारी द्वारा नई पहचान दिलाने वाली झाबुआ की लोकप्रिय भील कलाकार श्रीमती भूरी बाई को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किए जाने पर हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। आपने यह सिद्ध किया है कि अगर दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो बड़े से बड़ा लक्ष्य भी प्राप्त किया जा सकता है।'
भूरी बाई ने शुरू से गरीबी का अनुभव किया है और बाल मजदूर के रूप में भी काम किया है। जब वह 10 वर्ष की थी, तब उनका घर आग में जल गया था। इसके बाद उनके परिवार ने घास से एक घर बनाया और वर्षों तक वहां रहे। वह बाल वधू थीं और विवाह के बाद की आय 6 रुपए प्रतिदिन की थी।
अंतरराष्ट्रीय पहचान बनी
उन्होंने भील कला को कैनवास पर उतारा। वो भोपाल में आदिवासी लोककला अकादमी में एक कलाकार के तौर पर काम करती हैं। राज्य सरकार उन्हें अहिल्या पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है। उन्होंने अपने पिता से पिथौरा कला सीखी थी। अब उन्हें इस पारंपरिक कला को संरक्षित करने और इसे विश्व मंच पर ले जाने में योगदान के लिए प्रतिष्ठित पद्म श्री मिला है। लखनऊ से लेकर लंदन, मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद से लेकर यूनाइटेड स्टेट्स और यूनाइटेड किंगडम तक उनकी पेंटिंग्स दूर-दूर तक जा चुकी हैं।
जगदीश स्वामीनाथन ने बदल दी जिंदगी
कभी 6 रुपए कमाने वाली भूरी बाई की पेंटिंग 10,000 से लेकर 1 लाख रुपए तक में बिकी हैं। वो अपने काम को लेकर अमेरिका तक जा चुकी है, जबकि कभी उन्हें अच्छे से हिन्दी तक बोलना नहीं आता था। उनकी कला को अंतरराष्ट्रीय पहचान तक मिली है। उन्होंने भोपाल में भारत भवन में मजदूरी का भी काम किया। वे मीडिया को बताती हैं कि जगदीश स्वामीनाथन नाम के कलाकार और कवि ने उनके जीवन को बदल दिया। उन्होंने उनसे चित्र बनवाए और जब उन्होंने इसके बदले पैसे पूछे तो भूरी ने कहा कि रोज के रुपए, जबकि स्वामीनाथन ने 150 रुपए दिए।
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