नई दिल्ली। जीवनदायिनी गंगा को भी अब कोरोना काल में जीवन मिल रहा है। जो वर्षों से कूड़े और कचरे को ढोते ढोते हाफ चुकी थी अब उसमें सांस आ गई है। मेरठ के पास डॉल्फिन का गंगा की लहरों के साथ अठखेलियां करना हो या हरिद्वार में सिर्फ क्लोरीन की एक टैबलेट की मदद से पीने योग्य पानी का बन जाना हो यह सब आश्चर्यजनक है। दो काम हजारों करोड़ फूंकने के बाद भी संभव नहीं हुआ वो महज एक महीने के अंदर संभव हो गया।
लॉकडाउन का पॉजिटिव असर
केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड ने भी माना है कि यूपी में गंगा का जितना हिस्सा आता है वहां पानी पूरी तरह स्वच्छ है। सीपीसीबी के मुताबिक पानी में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ गई और इसके साथ ही नाइट्रेट की मात्रा में कमी आई है। सामान्य शब्दों में कहें तो गंगा का पानी, जलीय जंतुओं के रहने के उपयुक्त हो चुका है। इसका अर्थ यह भी है गंगा के उद्गम से लेकर सागर में मिलने तक पानी की गुणवत्ता बेहतर हुई है।
यूपी में गंगा का पानी मानकों पर उतरा खरा
सीपीसीबी के आंकड़ों के मुताबिक यूपी को खुश होने की बड़ी वजह मिली है। अगर पश्चिम बंगाल से यूपी की तुलना करें तो यहां पर गंगा नदी की पानी की गुणवत्ता आश्चर्यजनक से बेहतर हुई है। कानपुर के धोढ़ी घाट के पास पानी बहुत ही साफ है जो कि लॉकडाउन से पहले सपना हुआ करता था। सीपीसीबी के सदस्य प्रशांत गार्गवा बताते हैं कि लॉकडाउन पीरियड में औद्योगिक इकाइयों के बंद होने से बिजनौर के पास मध्य गंगा में जो वेस्ट पदार्थ छोड़े जाते थे उसमें कमी आई और उसका असर दिखाई दे रहा है। अगर पश्चिम बंगाल से तुलना करें तो यूपी में औद्योगिक ईकाइयों की संख्या ज्यादा है, लिहाजा वेस्ट पदार्थ का डिस्पोजल भी अधिक होता था।
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