जब हनुमान जी के आगे अकबर हो गया था नतमस्‍तक, बेहद रोचक और दिलचस्प है प्रयागराज के इस मंदिर की कहानी 

Lete Hanuman Ji Ka Mandir: प्रयागराज में स्थित लेटे हनुमान जी का मंदिर पूरे विश्व में मशहूर है। इस मंदिर की महिमा के सामने बादशाह अकबर भी नतमस्तक हो गया था।

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प्रयागराज के इस मंदिर के सामने नतमस्तक हो गया था बादशाह अकबर 
मुख्य बातें
  • बेहद प्रसिद्ध है प्रयागराज में स्थित लेटे हनुमान जी का मंदिर।
  • दिलचस्प और रोचक है इस मंदिर का इतिहास।
  • अकबर भी इस मंदिर की महिमा देख कर रह गया था हैरान।

Lete Hanuman Ji Ka Mandir: संगम नगरी प्रयागराज में स्थित लेटे हनुमान जी का मंदिर (Lete Hanuman Ji Ka Mandir) विश्व प्रसिद्ध है। प्रयागराज के इस प्राचीन मंदिर में हनुमान जी की अनोखी मुद्रा में स्थापित प्रतिमा देखने को मिलती है। इस मंदिर में हनुमान जी लेटे हुए उपस्थित हैं, इसलिए यह मंदिर लेटे हनुमान जी के नाम से प्रख्यात है। संगम के किनारे स्थापित यह अनूठा मंदिर अपनी भव्यता के लिए मशहूर है। हर वर्ष यहां दूर-दूर से श्रद्धालु लेटे हनुमान जी के दर्शन करने आते हैं। लेटे हनुमान जी के मंदिर से जुड़ी कई प्रचलित कथाएं लोकप्रिय हैं। मगर, बहुत कम लोग यह जानते हैं कि लेटे हुए हनुमान जी के सामने शक्तिशाली बादशाह अकबर भी नतमस्तक हो गया था। इस मंदिर का इतिहास बेहद दिलचस्प है जो आप सभी को जानना चाहिए।

मंदिर को अपने घेरे में लेना चाहता था अकबर

बात यह 1582 की है, जब, मगध, अवध और बंगाल सहित पूर्वी भारत में चल रहे विद्रोह पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए अकबर एक जगह की तलाश कर रहा था। दरअसल, अकबर एक ऐसी जगह की तलाश में था जहां वह अपना किला बना सके और अपने सैनिकों को वहां रख सके। ऐसा करने से बादशाह अकबर की फौज और मजबूत हो जाती और इस विद्रोह के दौरान वह और सशक्त हो जाता। इस योजना को सफल बनाने के लिए उसे प्रयागराज की जमीन बेहद पसंद आई। वह यहां अपना किला स्थापित करना चाहता था। मगर, गंगा और यमुना के कटाव के कारण वह ऐसा करने में असफल हो रहा था। नक्शे के मुताबिक अकबर का किला नहीं बन पा रहा था। 

सन्यासियों ने किया विरोध

अकबर अपना किला बनाने के लिए यमुना तट के किनारे ऊंची जमीन और लेटे हनुमान जी के मंदिर को अपने घेरे में लेने की कोशिश कर रहा था। जब सन्यासियों को अकबर की यह बात पता चली तब उन्होंने इसका विरोध किया। जिसके बाद अकबर ने लेटे हुए हनुमान जी के मंदिर को गंगा नदी के किनारे स्थापित करने का आदेश दिया। सन्यासियों के पास कोई और विकल्प नहीं था इसलिए उन्हें मजबूरन बादशाह अकबर की यह बात माननी पड़ी। बादशाह अकबर के विशेषज्ञ इस मंदिर की जगह बदलने की काफी कोशिश करने लगे।

टस से मस नहीं हुई हनुमान जी की प्रतिमा 

बादशाह अकबर के विशेषज्ञ अपनी पूरी कोशिश कर चुके थे। मगर हनुमान जी की प्रतिमा टस से मस नहीं हो रही थी। इस जद्दोजहद के बाद हर एक इंसान ने अपनी हार मान ली थी। बादशाह अकबर भी हनुमान जी की महिमा देखकर हैरान रह गया था और नतमस्तक हो गया था। जिसके बाद बादशाह अकबर ने अपने किले की दीवार मंदिर के पीछे खड़ी करी। अकबर ने कई जगह की जमीन हनुमान जी के लिए समर्पित की थी। 

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