Pakistan Taliban Clash: पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच युद्ध जैसे हालात पैदा हो चुके हैं। दोनों देशों को बांटने वाली सीमा रेखा डूरंड लाइन (Durand Line) पर जबरदस्त गोलीबारी चल रही है। अफगान सैनिकों ने दावा किया है कि पाकिस्तान की दो चौकियों पर उसने कब्जा कर लिया है। खबर लिखे जाने तक अफगान सैनिकों ने पाकिस्तान के 58 सैनिकों को मार गिराया है।
इस ताजा संघर्ष ने ईरान, कतर और सऊदी की भी चिंता बढ़ा दी है। तालिबान ने कहा कि है कि दो दिन पहले काबुल पर पाकिस्तान की तरफ से किए गए एयरस्ट्राइक के बाद उसने जवाबी कार्रवाई की है। अफगानिस्तान का आरोप है कि पाकिस्तान लगातार हवाई हमले को अंजाम दे रहा है। वहीं, पाकिस्तान के गृह मंत्री मोहसिन नकवी ने कहा है कि पाकिस्तान आर्मी हर ईंट का जवाब पत्थर से दे रही है।
सवाल है कि साल 2021 में जिस तालिबान को अफगानिस्तान की सत्ता पर बैठाने में पाकिस्तान ने अहम भूमिका निभाई थी वही देश अफगान की सेना पर हमला क्यों कर रहा है?
दरअसल, इस झड़प की सबसे बड़ी वजह टीटीपी यानी तहरीक-ए- तालिबान पाकिस्तान है। पाकिस्तान का आरोप है कि तालिबान इस संगठन की मदद कर रहा है। कुछ दिनों पहले ही पाकिस्तान ने दावा किया है कि उसकी सेना ने काबुल पर एयरस्ट्राइक कर तालिबानी नेता नूर वली महसूद की हत्या कर दी है।
नूर वली तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का मुखिया था। नूर का नाम पाकिस्तान के हिट लिस्ट में शामिल था। माना जा रहा है कि काबुल पर एयरस्ट्राइक करके पाकिस्तान ने अपने 'पैरों पर कुल्हाड़ी' मार ली है। इस सैन्य अभियान से तालिबान पूरी तरह नाराज है। आशंका जताई जा रही है कि किसी भी समय दोनों देशों के बीच चल रही झड़प, युद्ध में तब्दील हो सकती है।
अब ये जानना जरूरी है कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) की वजह से पाकिस्तान ने तालिबान से दुश्मनी क्यों मोल ले ली है? इसका जवाब है कि टीटीपी पाकिस्तान का विद्रोही संगठन है। इस संगठन की लड़ाई पाकिस्तान की सेना और सरकार से है।
इतिहास में झांके तो साल 2001 में जब अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया था तो उस दौरान इस संगठन के कई लड़ाके पाकिस्तान के कबाइली इलाकों में जाकर छिप गए। इसके बाद साल 2007 में बेतुल्लाह मेहसूद ने 13 विद्रोही गुटों को मिलाकर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान की स्थापनी की।
इस संगठन में शामिल कई लड़ाके पाकिस्तान की सेना में दाखिल हो गए। इन लड़ाकों के पास पाकिस्तान सेना की कई अहम खुफिया जानकारी है। गौरतलब है कि अमेरिका ने पाकिस्तान को चेताया है कि टीटीपी एटमी हथियारों तक पहुंच सकता है।
साल 2001 में अफगानिस्तान पर हुए हमले में पाकिस्तान ने अमेरिका का साथ दिया था। इस बात से टीटीपी नाराज हो गया। इन लड़ाकों को मानना था कि पाकिस्तान ने जो किया वो इस्लाम के खिलाफ है। मौजूदा समय की बात करें तो टीटीपी की मांग है कि पाकिस्तान में उसी तरह के इस्लामिक कानून का पालन हो, जैसा तालिबान के राज में अफगानिस्तान में हो रहा है।
भले ही पाकिस्तान भी एक इस्लामिक मुल्क है, लेकिन वहां अफगानिस्तान के मुकाबले एक बेहतर लोकतांत्रिक व्यवस्था है। टीटीपी की मांग है कि पाकिस्तान में पूरी तरह से शरिया कानून लागू हो, जिसमें राज्य का प्रमुख कुरान और हदीस के अनुसार हो ना कि संसद या संविधान की तरह।
पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा, दक्षिण वजीरिस्तान जैसे सीमावर्ती इलाकों में तरहीक-ए-तालिबान पाकिस्तान की मजबूत पकड़ है। इस संगठन की मांग है कि खैबर पख्तूनख्वा और उसके आस-पास के सीमावर्ती इलाकों को मिलाकर एक नए देश बनाया जाए।
बता दें कि साल 2014 में पाकिस्तान सेना ने इसके मुख्यालय वाले कबायली क्षेत्र में सबसे बड़ा सैन्य अभियान चलाया था। इस अभियान का असर भी दिखा। संगठन के कई लड़ाकों ने अफगानिस्तान में जाकर शरण ले ली थी, लेकिन तालिबान के सत्ता में आने के बाद फिर से टीटीपी की ताकत बढ़ने लगी।
अफगानिस्तान में तालिबान की एंट्री के बाद टीटीपी की ताकत लगातार बढ़ती जा रही है। तालिबान सरकार आने के बाद काबुल की जेलों से सैकड़ों टीटीपी कैदियों को रिहा कर दिया, जिसमें टीटीपी के उप संस्थापक अमीर मौलवी फकीर मोहम्मद जैसा नेता शामिल था। टीटीपी के लड़ाके अफगान तालिबान को अपना रोल मॉडल मानते हैं। हालांकि, तालिबान से जब भी टीटीपी के बारे में पूछा जाता है तो वो उसे पाकिस्तान की अंदर का मुद्दा बताते हैं।
पाकिस्तान के लिए तहरीक-ए-तालिबान एक ऐसी नासूर बन चुकी है, जिससे पाकिस्तान के नाक में दम कर रखा है। इंटरनेशनल फोरम फॉर राइट्स के मुताबिक, साल 2006 के बाद अब तक टीटीपी ने 83 हजार से ज्यादा पाकिस्तानियों की हत्या की है।
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