एकादशी या द्वादशी पर नहीं कर पाएं हैं तुलसी विवाह तो कार्तिक पूर्णिमा के दिन संपन्न करें ये शुभ काम, जान लें पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
तुलसी विवाह के दिन शालिग्राम भगवान का विवाह तुलसी माता से कराया जाता है। कहते हैं तुलसी विवाह कराने से वैवाहिक जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। यहां आप जानेंगे तुलसी विवाह की तारीख, मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व।
एकादशी या द्वादशी पर नहीं कर पाएं हैं तुलसी विवाह तो कार्तिक पूर्णिमा के दिन संपन्न करें ये शुभ काम, जान लें पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
वैसे तो तुलसी विवाह का आयोजन हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन किया जाता है। जो इस साल 13 नवंबर को थी। लेकिन अगर किसी कारण आप इस दिन तुलसी विवाह नहीं कर पाएं हैं तो ये शुभ काम आप कार्तिक पूर्णिमा पर भी कर सकते हैं। बता दें कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी पूजन का विशेष महत्व माना जाता है। इस बार कार्तिक पूर्णिमा 15 नवंबर को है। इस दिन तुलसी जी के समक्ष 365 दीपक जलाना भी बेहद शुभ माना जाता है। चलिए जानते हैं कार्तिक पूर्णिमा पर तुलसी विवाह कराने का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।
Tulsi Vivah Aarti Lyrics
कार्तिक पूर्णिमा पर तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त 2024 (Tulsi Vivah Shubh Muhurat On Kartik Purnima 2024)
कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी विवाह कराने का शुभ मुहूर्त 15 नवंबर 2024 की शाम 5 बजकर 10 मिनट से लेकर शाम 7 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। वहीं कुछ लोग इस दिन सुबह-सुबह भी तुलसी विवाह कराते हैं।
तुलसी विवाह की पूजन विधि (Tulsi Vivah Puja Samagri)
- तुलसी विवाह के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर साफ कपड़े धारण करें।
- इसके बाद घर के पूजन स्थल को या जहां भी आपको तुलसी विवाह करना है उस स्थान को रंगोली से सजाएं।
- फिर वहां पर गन्ने के चार डंडों से मंडप बनाएं और दो लकड़ी की चौकियां भी रखें।
- इनमें से एक चौकी को पीले रंग के कपड़े से तो दूसरी चौकी को लाल रंग के कपड़े से ढ़का जाता है।
- बाईं चौकी पर भगवान विष्णु या फिर उनके स्वरूप शालिग्राम की प्रतिमा रखी जाती है तो वहीं दाईं ओर तुलसी का पौधा रखा जाता है।
- एक चौकी पर एक कलश में जल भरकर रख दें। फिर एक नारियल लें और उसके ऊपर कलावा बांधकर उसे कलश के ऊपर रख दें।
- ध्यान रहे कि नारियल के नीचे आपको कलश पर कुछ आम की पत्तियां भी सजाकर रखनी हैं।
- फिर एक थाली में भगवान गणेश की प्रतिमा रखकर उन्हें अर्घ्य अर्पित करें। फिर मूर्ति को चावलों की ढ़ेरी पर रखकर जनेऊ, हल्दी, धूप, फूल, कलावा, कुमकुम, इत्र, मिठाई और फल अर्पित करें।
- भगवान गणेश की विधि विधान पूजा करके उनसे बिना रुकावट के पूजा संपन्न होने की प्रार्थना करें।
- इसके बाद शालिग्राम भगवान और देवी तुलसी को हल्दी और कुमकुम लगाई जाती है।
- इस दौरान शालिग्राम भगवान को जनेऊ और कलावा चढ़ाएं और साथ में तुलसी माता को लाल रंग की चुनरी और श्रृंगार की सामग्री चढ़ाएं।
- इसके बाद दो मालाएं लें। उन्हें शालिग्राम भगवान और देवी तुलसी के चरणों से स्पर्श करवाकर वरमाला की विधि पूरी कराएं।
- इसके बाद देवी तुलसी को शगुन चढ़ाएं और तुलसी माता की चुनरी को शालिग्राम जी के पीले रंग के वस्त्र से बांधकर गठबंधन की रस्म करें।
- फिर शालिग्राम भगवान को चौकी समेत हाथ में लेकर तुलसी जी की सात बार परिक्रमा करें। इस बात का ध्यान रखें कि शालिग्राम जी की चौकी किसी पुरुष ने ही गोद में उठाई हो।
- इसके बाद तुलसी माता और शालिग्राम भगवान की आरती करें और तुलसी विवाह संपन्न हो जाने की घोषणा कर दें।
- साथ ही सभी में प्रसाद बांटा दें।
- इस दिन तुलसी माता और शालिग्राम भगवान को खीर और पूड़ी का भोग लगाना चाहिए।
- तुलसी विवाह के दौरान मंगल गीत भी जरूर गाएं।
तुलसी विवाह के लाभ (Tulsi Vivah Benefits)
धार्मिक मान्यताओं अनुसार तुलसी विवाह कराने से परिवार में सुख-शांति आती है। साथ ही परिवार की सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। इतना ही नहीं तुलसी विवाह कराने से दुर्भाग्य से भी छुटकारा मिलता है। अविवाहित लड़कियों को तुलसी विवाह कराने से मनचाहे वर की प्राप्ति होती है।
तुलसी विवाह कितने दिनों तक कर सकते हैं (Tulsi Vivah Kab Kab Kara Sakte Hai)
तुलसी विवाह वैसे तो कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को कराया जाता है लेकिन भारत में कुछ जगहों पर पांच दिनों तक तुलसी विवाह का पर्व मनाया जाता है। जिसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से होती है और इसका समापन कार्तिक पूर्णिमा को होता है।
तुलसी जी के मंत्र (Tulsi Ji Ke Mantra)
महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते।।
तुलसी माता की आरती (Tulsi Ji Ki Aarti)
तुलसी महारानी नमो-नमो,
हरि की पटरानी नमो-नमो ।
धन तुलसी पूरण तप कीनो,
शालिग्राम बनी पटरानी ।
जाके पत्र मंजरी कोमल,
श्रीपति कमल चरण लपटानी
धूप-दीप-नवैद्य आरती,
पुष्पन की वर्षा बरसानी ।
छप्पन भोग छत्तीसों व्यंजन,
बिन तुलसी हरि एक ना मानी ॥
सभी सखी मैया तेरो यश गावें,
भक्तिदान दीजै महारानी ।
नमो-नमो तुलसी महारानी,
तुलसी महारानी नमो-नमो ॥
तुलसी महारानी नमो-नमो,
हरि की पटरानी नमो-नमो।
तुलसी विवाह सामग्री लिस्ट
माता तुलसी के विवाह के लिए 16 श्रृंगार की आवश्यकता होती है। इसमें सिंदूर, लाल चुनरी, लाल साड़ी, कमरबंद, बिंदू, चूड़ी, मांग टीका, हार, मंगलसूत्र, मेंहदी आदि शामिल है।तुलसी विवाह के भजन (Tulsi Vivah Bhajan)
मेरी प्यारी तुलसा जी बनेंगी दुल्हनियां...सजके आयेंगे दूल्हे राजा।
देखो देवता बजायेंगे बाजा...
सोलह सिंगार मेरी तुलसा करेंगी।
हल्दी चढ़ेगी मांग भरेगी...
देखो होठों पे झूलेगी नथनियां।
देखो देवता...
देवियां भी आई और देवता भी आए।
साधु भी आए और संत भी आए...
और आई है संग में बरातिया।
देखो देवता...
गोरे-गोरे हाथों में मेहंदी लगेगी...
चूड़ी खनकेगी ,वरमाला सजेगी।
प्रभु के गले में डालेंगी वरमाला।
देखो देवता...
लाल-लाल चुनरी में तुलसी सजेगी...
आगे-आगे प्रभु जी पीछे तुलसा चलेगी।
देखो पैरो में बजेगी पायलियां।
देखो देवता...
सज धज के मेरी तुलसा खड़ी है...
डोली मंगवा दो बड़ी शुभ घड़ी है।
देखो आंखों से बहेगी जलधारा।
देखो देवता...
Kartik Purnima Ganga Snan Importance (कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान का महत्व)
शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान का बहुत ही विशेष महत्व है। कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान और दान करने से साधक को अक्षय फल की प्राप्ति होती है। कार्तिक पूर्णिमा पर शुभ मुहूर्त में गंगा नदी या किसी पवित्र नदी में स्नान करने से सौ अश्वमेध यज्ञ करने जितने फल की प्राप्ति होती है और अंत समय में मोक्ष की प्राप्ति होती है।Tulsi Vidai Kab Hai 2024: तुलसी जी की विदाई कब है
तुलसी माता की विदाई कार्तिक पूर्णिमा के दिन की जाती है।तुलसी माता की आरती (Tulsi Mata Ki Aarti)
जय जय तुलसी माता,मैया जय तुलसी माता ।
सब जग की सुख दाता,
सबकी वर माता ॥
॥ जय तुलसी माता...॥
सब योगों से ऊपर,
सब रोगों से ऊपर ।
रज से रक्ष करके,
सबकी भव त्राता ॥
॥ जय तुलसी माता...॥
बटु पुत्री है श्यामा,
सूर बल्ली है ग्राम्या ।
विष्णुप्रिय जो नर तुमको सेवे,
सो नर तर जाता ॥
॥ जय तुलसी माता...॥
हरि के शीश विराजत,
त्रिभुवन से हो वंदित ।
पतित जनों की तारिणी,
तुम हो विख्याता ॥
॥ जय तुलसी माता...॥
लेकर जन्म विजन में,
आई दिव्य भवन में ।
मानव लोक तुम्हीं से,
सुख-संपति पाता ॥
॥ जय तुलसी माता...॥
हरि को तुम अति प्यारी,
श्याम वर्ण सुकुमारी ।
प्रेम अजब है उनका,
तुमसे कैसा नाता ॥
हमारी विपद हरो तुम,
कृपा करो माता ॥
॥ जय तुलसी माता...॥
जय जय तुलसी माता,
मैया जय तुलसी माता ।
सब जग की सुख दाता,
सबकी वर माता ॥
कार्तिक पूर्णिमा पर किसकी पूजा होती है?
कार्तिक पूर्णिमा के शुभ दिन मां लक्ष्मी जी की पूजा करने का भी विशेष महत्व होता है. ऐसा माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी बहुत प्रसन्न होती हैं।365 बाती का दीपक कब जलाएं 2024 (365 Batti Ka Diya Kab Jalaye)
365 बाती का दीया जलाने के लिए सबसे शुभ दिन कार्तिक पूर्णिमा का माना जाता है। जो इस बार 15 नवंबर को है। इस दिन शाम 5 बजकर 10 मिनट से लेकर शाम 7 बजकर 47 मिनट के बीच में कभी भी ये दीपक जलाया जा सकता है।Kartik Purnima Ka Mahatva: कार्तिक पूर्णिमा महत्व
सनातन धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का अत्यधिक महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु, भगवान शिव, और देवी लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है। साथ ही, इस पर्व को देव दीपावली और गुरु नानक जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में भी मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन देवता पृथ्वी पर आते हैं और दीपों के माध्यम से उनका स्वागत किया जाता है।Tulsi Vivah Me Kya- Kya Chadaya Jata Hai (तुलसी विवाह में क्या- क्या चढ़ाया जाता है)
सिंदूरबिंदी
मेंहदी
चुनरी
हल्दी की गांठ
केले के पत्ते
चूड़ी
साड़ी
आलता
केसर
अक्षत
कमलगट्टा
Tulsi vivah geet: तुलसी विवाह गीत लिरिक्स
मेरी प्यारी तुलसा जी बनेंगी दुल्हनियां...सजके आयेंगे दूल्हे राजा।
देखो देवता बजायेंगे बाजा...
सोलह सिंगार मेरी तुलसा करेंगी।
हल्दी चढ़ेगी मांग भरेगी...
देखो होठों पे झूलेगी नथनियां।
देखो देवता...
देवियां भी आई और देवता भी आए।
साधु भी आए और संत भी आए...
और आई है संग में बरातिया।
देखो देवता...
गोरे-गोरे हाथों में मेहंदी लगेगी...
चूड़ी खनकेगी ,वरमाला सजेगी।
प्रभु के गले में डालेंगी वरमाला।
देखो देवता...
लाल-लाल चुनरी में तुलसी सजेगी...
आगे-आगे प्रभु जी पीछे तुलसा चलेगी।
देखो पैरो में बजेगी पायलियां।
देखो देवता...
सज धज के मेरी तुलसा खड़ी है...
डोली मंगवा दो बड़ी शुभ घड़ी है।
देखो आंखों से बहेगी जलधारा।
देखो देवता...
Tulsi lagane vidhi: तुलसी लगाने की विधि
वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में तुलसी का पौधा उत्तर पूर्व या फिर उत्तर दिशा में लगाना शुभ होता है। माना जाता है कि इस दिशा में तुलसी का पौधा लगाने से परिवार के सदस्यों के बीच मनमुटाव की समस्या दूर होती है। साथ ही घर में सदैव मां लक्ष्मी का वास होता है।Can we eat non veg on tulsi vivah: तुलसी विवाह के दिन नॉनवेज खा सकते हैं
Tulsi vivah benefit: तुलसी विवाह के लाभ
तुलसी विवाह के दौरान भक्तों को भगवान विष्णु के प्रति प्रेम और समर्पण को समझाने का महत्व बताया जाता है। शालिग्राम की पूजा से व्यक्ति को मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ने का अवसर मिलता है और परिवार में सुख-शांति का संचार होता है।तुलसी विवाह भोग लिस्ट : Tulsi Vivah Bhog List
पंचामृत-कच्चा दूध
-फल
-तुलसी के पत्ते
-केसर की खीर
-सकरकंद का भोग
Tulsi Vivah Katha: तुलसी विवाह कथा
पौराणिक कथाओं अनुसार वृंदा नाम की एक लड़की थी जिसका विवाह राक्षस कुल में दानव राजा जलंधर से हुआ था। वृंदा एक पतिव्रता स्त्री थी जो अपने पति से बेहद प्रेम करती थी। एक बार देवताओं और दानवों में जब युद्ध छिड़ गया तो जलंधर को भी उस युद्ध में जाना पड़ रहा था। तब वृंदा ने अपने पति से कहा कि मैं युद्ध में आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी और जब तक आप वापस नहीं लौट आते मैं अपना संकल्प नहीं छोडूगीं। इसके बाद जलंधर युद्ध में चला गया। वृंदा के व्रत के प्रभाव से जलंधर देवताओं पर भारी पड़ने लगा था। जब देवताओं को ये समझ आ गया कि जालंधर को हरा पाना काफी मुश्किल है तो वे भगवान विष्णु जी के पास गए। तब भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धरा और वृंदा के महल में पहुंच गए। जैसे ही वृंदा की नजर अपने पति पर पड़ी वे तुरंत ही पूजा से ऊठ गई और उसने जलंधर का रूप धरे भगवान विष्णु के चरण छू लिए। इस तरह से वृंदा का पूजा से न उठने का संकल्प टूट गया और युद्ध में जालंधर मारा गया। इसके बाद जलंधर का सिर वृंदा के महल में जा गिरा। वृंदा को समझ नहीं आया कि यदि फर्श पर पड़ा सिर मेरे पति का है, तो सामने कौन है? तब भगवान विष्णु अपने वास्तिवक रूप में आ गए। वृंदा को अपने साथ हुए इस छल से बहुत ठेस पहुंची और उसने भगवान विष्णु को यह श्राप दे दिया कि “आप पत्थर के बन जाओ”। कहते हैं वृंदा के श्राप से विष्णु जी तुरंत पत्थर के बन गए। लेकिन भगवान विष्णु के पत्थर के बनते ही हर जगह हाहाकार मच गया। तब लक्ष्मी जी ने वृंदा से विष्णु जी को श्राप से मुक्त करने की प्रार्थना की।जिसके बाद वृंदा ने भगवान विष्णु का श्राप विमोचन किया और स्वयं अपने पति का कटा हुआ सिर लेकर सती हो गई। कहते हैं जिस जगह पर वृंदा सती हुई थीं उनकी राख से वहां एक पौधा निकला, जिसे भगवान विष्णु ने “तुलसी” नाम दिया और साथ ही ये भी कहा कि “शालिग्राम” नाम से मेरा एक रूप इस पत्थर में रहेगा। जिसकी पूजा हमेशा तुलसी जी के साथ ही की जाएगी। साथ ही भगवान ने तुलसी को ये भी वरदान दिया कि मैं बिना तुलसी के भोग तक स्वीकार नहीं करुंगा। कहते हैं तब से ही तुलसी जी की पूजा शुरू हो गई और कार्तिक मास में उनका विवाह शालिग्राम जी के साथ कराया जाने लगा।
सत्यनारायण जी की आरती (Satyanarayan Ji Ki Aarti)
जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।सत्यनारायण स्वामी, जन पातक हरणा ॥
ॐ जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।
रत्न जडि़त सिंहासन, अद्भुत छवि राजै ।
नारद करत निराजन, घण्टा ध्वनि बाजै ॥
ॐ जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।
प्रकट भये कलि कारण, द्विज को दर्श दियो ।
बूढ़ा ब्राह्मण बनकर, कंचन महल कियो ॥
ॐ जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।
दुर्बल भील कठारो, जिन पर कृपा करी ।
चन्द्रचूड़ एक राजा, तिनकी विपत्ति हरी ॥
ॐ जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।
वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्ही ।
सो फल भोग्यो प्रभुजी, फिर-स्तुति कीन्हीं ॥
ॐ जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।
भाव भक्ति के कारण, छिन-छिन रूप धरयो ।
श्रद्धा धारण कीन्हीं, तिनको काज सरयो ॥
ॐ जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।
ग्वाल-बाल संग राजा, वन में भक्ति करी ।
मनवांछित फल दीन्हों, दीनदयाल हरी ॥
ॐ जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।
चढ़त प्रसाद सवायो, कदली फल, मेवा ।
धूप दीप तुलसी से, राजी सत्यदेवा ॥
ॐ जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।
श्री सत्यनारायण जी की आरती, जो कोई नर गावै ।
ऋद्धि-सिद्ध सुख-संपत्ति, सहज रूप पावे ॥
जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।
सत्यनारायण स्वामी, जन पातक हरणा ॥
Tulsi Vivah Mangalashtak Marathu Lyrics: तुळशी विवाह मंगलाष्टके
स्वस्ति श्री गणनायकं गजमुखं, मोरेश्वरं सिद्धिदं ।बल्लाळो मुरुडं विनायकमहं, चिन्तामणि स्थेवरं ||
लेण्याद्रिं गिरिजात्मकं सुरवरदं, विघ्नेश्वरम् ओज़रम् |
ग्रामे रांजण संस्थितम् गणपतिः, कुर्यात् सदा मंगलम || १ ||
गंगा सिंधु सरस्वती च यमुना, गोदावरी नर्मदा ।
कावेरी शरयू महेंद्रतनया शर्मण्वती वेदिका ।।
क्षिप्रा वेत्रवती महासुर नदी, ख्याता गया गंडकी ।
पूर्णा पूर्ण जलैः समुद्र सरिता, कुर्यातसदा मंगलम ।। २ ।।
लक्ष्मी: कौस्तुभ पारिजातक सुरा धन्वंतरिश्चंद्रमा: ।
गाव: कामदुधाः सुरेश्वर गजो, रंभादिदेवांगनाः ।।
अश्वः सप्त मुखोविषम हरिधनुं, शंखोमृतम चांबुधे ।
रत्नानीह चतुर्दश प्रतिदीनम, कुर्वंतु वोमंगलम ।। ३ ।।
राजा भीमक रुख्मिणीस नयनी, देखोनी चिंता करी ।
ही कन्या सगुणा वरा नृपवरा, कवणासि म्यां देईजे ।।
आतां एक विचार कृष्ण नवरा, त्यासी समर्पू म्हणे ।
रुख्मी पुत्र वडील त्यासि पुसणे, कुर्यात सदा मंगलम ।। ४ ।।
लक्ष्मीः कौस्तुभ पांचजन्य धनु हे, अंगीकारी श्रीहरी ।
रंभा कुंजर पारिजातक सुधा, देवेंद्र हे आवरी ।।
दैत्यां प्राप्ति सुरा विधू विष हरा, उच्चैःश्रवा भास्करा ।
धेनुवैद्य वधू वराशि चवदा, कुर्यात सदा मंगलम ।। ५ ।।
लाभो संतति संपदा बहु तुम्हां, लाभोतही सद्गुण ।
साधोनि स्थिर कर्मयोग अपुल्या, व्हा बांधवां भूषण ।।
सारे राष्ट्र्धुरीण हेचि कथिती कीर्ती करा उज्ज्वल ।
गा गार्हस्थाश्रम हा तुम्हां वधुवऱां देवो सदा मंगलम ।। ६ ।।
विष्णूला कमला शिवासि गिरिजा, कृष्णा जशी रुख्मिणी ।
सिंधूला सरिता तरुसि लतिका, चंद्रा जशी रोहिणी ।।
रामासी जनकात्मजा प्रिय जशी, सावित्री सत्यव्रता ।
तैशी ही वधू साजिरी वरितसे, हर्षे वरासी आतां ।। ७।।
आली लग्नघडी समीप नवरा घेऊनि यावा घरा ।
गृह्योत्के मधुपर्कपूजन करा अन्तःपटाते धारा ।।
दृष्टादृष्ट वधुवरा न करितां, दोघे करावी उभी ।
वाजंत्रे बहु गलबला न करणे, लक्ष्मीपते मंगलम ।। ८ ।।
तुलसी विवाह की सरल विधि
इस दिन तुलसी जी को फल, फूल, लाल चुनरी, बिंदी, सिंदूर समेत श्रृंगार का सामान अर्पित करें और लाल चंदन से तिलक लगाएं। अब धूपबत्ती और घी का दीपक प्रज्वलित करें। अब हाथों में शालिग्राम जी की चौकी उठाकर तुलसी जी की 7 बार परिक्रमा करवाएं। पूरी श्रद्धा के साथ तुलसी जी और शालिग्राम जी की आरती करें। पूजा के बाद प्रसाद सभी में बांट दें।Tulsi Vivah Benefits: तुलसी विवाह से मिलने वाले शुभ फल
यदि आप तुलसी विवाह करवाते हैं तो आपको कई शुभ फलों की प्राप्ति होती है। यदि आपके घर में किसी की शादी में देरी हो रही है तो तुलसी विवाह करवाने से शीघ्र शादी के योग बन सकते हैं। जो जातक कन्या प्राप्ति की कामना करते हैं उन्हें तुलसी विवाह करवाने से कन्या की प्राप्ति होती है।तुलसी मंगलाष्टक पाठ
ॐ श्री मत्पंकजविष्टरो हरिहरौ, वायुमर्हेन्द्रोऽनलः।चन्द्रो भास्कर वित्तपाल वरुण, प्रताधिपादिग्रहाः।
प्रद्यम्नो नलकूबरौ सुरगजः, चिन्तामणिः कौस्तुभः,
स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः, कुवर्न्तु वो मंगलम्।।
गंगा गोमतिगोपतिगर्णपतिः, गोविन्दगोवधर्नौ,
गीता गोमयगोरजौ गिरिसुता, गंगाधरो गौतमः।
गायत्री गरुडो गदाधरगया, गम्भीरगोदावरी,
गन्धवर्ग्रहगोपगोकुलधराः, कुवर्न्तु वो मंगलम्।।
नेत्राणां त्रितयं महत्पशुपतेः अग्नेस्तु पादत्रयं,
तत्तद्विष्णुपदत्रयं त्रिभुवने, ख्यातं च रामत्रयम्।
गंगावाहपथत्रयं सुविमलं, वेदत्रयं ब्राह्मणम्,
संध्यानां त्रितयं द्विजैरभिमतं, कुवर्न्तु वो मंगलम्।।
बाल्मीकिः सनकः सनन्दनमुनिः, व्यासोवसिष्ठो भृगुः,
जाबालिजर्मदग्निरत्रिजनकौ, गर्गोऽ गिरा गौतमः।
मान्धाता भरतो नृपश्च सगरो, धन्यो दिलीपो नलः,
पुण्यो धमर्सुतो ययातिनहुषौ, कुवर्न्तु वो मंगलम्।।
गौरी श्रीकुलदेवता च सुभगा, कद्रूसुपणार्शिवाः,
सावित्री च सरस्वती च सुरभिः, सत्यव्रतारुन्धती।
स्वाहा जाम्बवती च रुक्मभगिनी, दुःस्वप्नविध्वंसिनी,
वेला चाम्बुनिधेः समीनमकरा, कुवर्न्तु वो मंगलम्।।
गंगा सिन्धु सरस्वती च यमुना, गोदावरी नमर्दा,
कावेरी सरयू महेन्द्रतनया, चमर्ण्वती वेदिका।
शिप्रा वेत्रवती महासुरनदी, ख्याता च या गण्डकी,
पूर्णाः पुण्यजलैः समुद्रसहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम्।।
लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुरा, धन्वन्तरिश्चन्द्रमा,
गावः कामदुघाः सुरेश्वरगजो, रम्भादिदेवांगनाः।
अश्वः सप्तमुखः सुधा हरिधनुः, शंखो विषं चाम्बुधे,
रतनानीति चतुदर्श प्रतिदिनं, कुवर्न्तु वो मंगलम।।
ब्रह्मा वेदपतिः शिवः पशुपतिः, सूयोर् ग्रहाणां पतिः,
शुक्रो देवपतिनर्लो नरपतिः, स्कन्दश्च सेनापतिः।
विष्णुयर्ज्ञपतियर्मः पितृपतिः, तारापतिश्चन्द्रमा,
इत्येते पतयस्सुपणर्सहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम्।।
तुलसी विवाह कब कराया जाता है
हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को तुलसी विवाह होता है। मान्यता है कि जो लोग तुलसी विवाह करवाते हैं उनको कन्यादान का पुण्य मिलता है।तुलसी विवाह के लाभ
- तुलसी विवाह करवाने से व्यक्ति को अत्यधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।
- जिन व्यक्तियों या परिवारों में विवाह में देरी या बाधाएं आती हैं, वे तुलसी विवाह करवाकर इन समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं।
- तुलसी विवाह का आयोजन करने से वैवाहिक जीवन में सुख और शांति आती है। जिन दंपत्तियों के बीच संबंधों में तनाव हो, उनके लिए यह पूजा शुभ मानी जाती है।
तुलसी विवाह स्पेशल भजन : तुलसी विवाह बधाई गीत, तुलसी विवाह की कथा
तुलसी विवाह में जल कैसे चढ़ाएं?
तुलसी विवाह के दिन तुलसी पर जल ना चढ़ाएं, धार्मिक मान्यता है कि इस दिन देवी भगवान विष्णु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं।Tulsi Vivah Me Kya- Kya Chadaya Jata Hai (तुलसी विवाह में क्या- क्या चढ़ाया जाता है)
- सिंदूर
- बिंदी
- मेंहदी
- चुनरी
- हल्दी की गांठ
- केले के पत्ते
- चूड़ी
- साड़ी
- आलता
- केसर
- अक्षत
- कमलगट्टा
Tulsi Vivah Katha: तुलसी विवाह कथा
पौराणिक कथाओं अनुसार वृंदा नाम की एक लड़की थी जिसका विवाह राक्षस कुल में दानव राजा जलंधर से हुआ था। वृंदा एक पतिव्रता स्त्री थी जो अपने पति से बेहद प्रेम करती थी। एक बार देवताओं और दानवों में जब युद्ध छिड़ गया तो जलंधर को भी उस युद्ध में जाना पड़ रहा था। तब वृंदा ने अपने पति से कहा कि मैं युद्ध में आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी और जब तक आप वापस नहीं लौट आते मैं अपना संकल्प नहीं छोडूगीं। इसके बाद जलंधर युद्ध में चला गया। वृंदा के व्रत के प्रभाव से जलंधर देवताओं पर भारी पड़ने लगा था। जब देवताओं को ये समझ आ गया कि जालंधर को हरा पाना काफी मुश्किल है तो वे भगवान विष्णु जी के पास गए। तब भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धरा और वृंदा के महल में पहुंच गए। जैसे ही वृंदा की नजर अपने पति पर पड़ी वे तुरंत ही पूजा से ऊठ गई और उसने जलंधर का रूप धरे भगवान विष्णु के चरण छू लिए। इस तरह से वृंदा का पूजा से न उठने का संकल्प टूट गया और युद्ध में जालंधर मारा गया। इसके बाद जलंधर का सिर वृंदा के महल में जा गिरा। वृंदा को समझ नहीं आया कि यदि फर्श पर पड़ा सिर मेरे पति का है, तो सामने कौन है? तब भगवान विष्णु अपने वास्तिवक रूप में आ गए। वृंदा को अपने साथ हुए इस छल से बहुत ठेस पहुंची और उसने भगवान विष्णु को यह श्राप दे दिया कि “आप पत्थर के बन जाओ”। कहते हैं वृंदा के श्राप से विष्णु जी तुरंत पत्थर के बन गए। लेकिन भगवान विष्णु के पत्थर के बनते ही हर जगह हाहाकार मच गया। तब लक्ष्मी जी ने वृंदा से विष्णु जी को श्राप से मुक्त करने की प्रार्थना की।जिसके बाद वृंदा ने भगवान विष्णु का श्राप विमोचन किया और स्वयं अपने पति का कटा हुआ सिर लेकर सती हो गई। कहते हैं जिस जगह पर वृंदा सती हुई थीं उनकी राख से वहां एक पौधा निकला, जिसे भगवान विष्णु ने “तुलसी” नाम दिया और साथ ही ये भी कहा कि “शालिग्राम” नाम से मेरा एक रूप इस पत्थर में रहेगा। जिसकी पूजा हमेशा तुलसी जी के साथ ही की जाएगी। साथ ही भगवान ने तुलसी को ये भी वरदान दिया कि मैं बिना तुलसी के भोग तक स्वीकार नहीं करुंगा। कहते हैं तब से ही तुलसी जी की पूजा शुरू हो गई और कार्तिक मास में उनका विवाह शालिग्राम जी के साथ कराया जाने लगा।
How to do tulsi puja at home: घर पर तुलसी पूजा कैसे करें
सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठे और अपने इष्ट देवी-देवता के ध्यान से दिन की शुरुआत करें।इसके बाद स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें।
तुलसी में जल अर्पित करें।
तुलसी को सिंदूर लगाएं और फूल अर्पित करें।
तुलसी के पास घी का दीपक जलाएं।
तुलसी स्तोत्र पाठ और तुलसी आरती करें।
इसके बाद फल और मिठाई का भोग लगाएं।
अंत में प्रसाद का वितरण करें।
Tulsi Vivah Vrat Niyam (तुलसी विवाह व्रत नियम)
तुलसी विवाह के दिन तुलसी के पौधे की अच्छे से सफाई करें।इस दिन भूलकर भी तुलसी का पत्ता नहीं तोड़ना चाहिए।
तुलसी विवाह के दिन तुलसी के पौधे को फूलों से सजाएं।
तुलसी विवाह के दिन दान करना बहुत ही शुभ होता है।
इस व्रत के दिन तामसिक भोजन का प्रयोग ना करें।
Tulsi vivah 2024 Date And Time: तुलसी विवाह डेट और टाइम 2024
तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त 13 नवंबर की सुबह 10 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 5 मिनट तक रहेगा। वहीं दूसरा शुभ मुहूर्त शाम 5.29 बजे से शाम 7.53 बजे तक रहेगा।Tulsi vivah vidhi at home: घर पर तुलसी विवाह कैसे करें
शालिग्राम भगवान और माता तुलसी पर गंगाजल से छिड़काव करें। शालिग्राम भगवान को धोती अर्पित करें और तुलसी और भगवान विष्णुजी को धागे से बांधे। अब दूध और चंदन से शालिग्राम जी को तिलक लगाएं और माता तुलसी को रोली से तिलक करें। फल,फूल,धूप-दीप समेत पूजा की सभी सामग्री को तुलसी माता और शालिग्रामजी को अर्पित करें।Tulsi vivah aarti lyrics: तुलसी विवाह आरती लिरिक्स
जय जय तुलसी मातासब जग की सुख दाता, वर दाता
जय जय तुलसी माता ।।
सब योगों के ऊपर, सब रोगों के ऊपर
रुज से रक्षा करके भव त्राता
जय जय तुलसी माता।।
बटु पुत्री हे श्यामा, सुर बल्ली हे ग्राम्या
विष्णु प्रिये जो तुमको सेवे, सो नर तर जाता
जय जय तुलसी माता ।।
हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वन्दित
पतित जनो की तारिणी विख्याता
जय जय तुलसी माता ।।
लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में
मानवलोक तुम्ही से सुख संपति पाता
जय जय तुलसी माता ।।
हरि को तुम अति प्यारी, श्यामवरण तुम्हारी
प्रेम अजब हैं उनका तुमसे कैसा नाता
जय जय तुलसी माता ।।
Tulsi vivah geet lyrics: तुलसी विवाह गीत लिरिक्स
मेरे अंगना में तुलसी का ब्याह सखियोंपत्ते पत्ते पे मोहन का नाम सखियों
आज तुलसी का सोलह सृंगार सखियों
पत्ते पत्ते पे मोहन का नाम सखियों
तुलसी के ब्याह में गणपत जी आये
गणपत जी आये संग में रिद्धि सिद्धि लाये
रिद्धि सिद्धि बरसाये सुहाग सखियों
पत्ते पत्ते पे मोहन का नाम सखियों
मेरे अंगना में तुलसी का ब्याह सखियों
पत्ते पत्ते पे मोहन का नाम सखियों
तुलसी के ब्याह में भोले जी आये
भोले जी आये संग में गौरा को लाये
गौरा रानी बरसाये सुहाग सखियों
पत्ते पत्ते पे मोहन का नाम सखियों
मेरे अंगना में तुलसी का ब्याह सखियों
पत्ते पत्ते पे मोहन का नाम सखियों
तुलसी के ब्याह में विष्णु जी आये
विष्णु जी आये संग में लक्ष्मी जी को लाये
लक्ष्मी जी बरसाये सुहाग सखियों
पत्ते पत्ते पे मोहन का नाम सखियों
मेरे अंगना में तुलसी का ब्याह सखियों
पत्ते पत्ते पे मोहन का नाम सखियों
तुलसी के ब्याह में रामा जी आये
रामा जी आये संग में सीता जी को लाये
सीताजी बरसाये सुहाग सखियों
पत्ते पत्ते पे मोहन का नाम सखियों
मेरे अंगना में तुलसी का ब्याह सखियों
पत्ते पत्ते पे मोहन का नाम सखियों
तुलसी जी की आरती (Tulsi Ji Ki Aarti Lyrics)
जय जय तुलसी मातासब जग की सुख दाता, वर दाता
जय जय तुलसी माता ।।
सब योगों के ऊपर, सब रोगों के ऊपर
रुज से रक्षा करके भव त्राता
जय जय तुलसी माता।।
बटु पुत्री हे श्यामा, सुर बल्ली हे ग्राम्या
विष्णु प्रिये जो तुमको सेवे, सो नर तर जाता
जय जय तुलसी माता ।।
हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वन्दित
पतित जनो की तारिणी विख्याता
जय जय तुलसी माता ।।
लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में
मानवलोक तुम्ही से सुख संपति पाता
जय जय तुलसी माता ।।
हरि को तुम अति प्यारी, श्यामवरण तुम्हारी
प्रेम अजब हैं उनका तुमसे कैसा नाता
जय जय तुलसी माता ।।
तुलसी विवाह 2024 पूजा मुहूर्त (Tulsi Vivah 2024 Puja Muhurat)
तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त शाम 6 बजे से 8 बजे तक रहेगा। वहीं जो लोग सुबह के समय तुलसी विवाह करते हैं उनके लिए पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 10.46 से दोपहर 12.05 तक रहेगा।Tulsi Vivah Kyon Manaya jata hai (तुलसी विवाह क्यों मनाया जाता है)
पुराण के अनुसार माता तुलसी का पहला विवाह जालंधर से हुआ था। जालंधर बहुत ही अत्याचारी और पापी था। वहीं तुलसी माता पतिव्रता पत्नि थी। संसार को जलांधर के अत्याचार से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने एक लीला रची। तुलसी जी का नाम वृंदा था। इनके पतिव्रत को तोड़ने के लिए भगवान विष्णु ने जलांधर का रूप धारण करके वृंदा को स्पर्श किया। जिसके कारण तुलसी का पतिव्रत धर्म टूट गया है और शिव जी ने जलांधर का वध कर दिया। जब इस बात का पता वृंदा को चला तो उन्होंने विष्णु जी को श्राप देकर उनको पत्थर का बना दिया। लक्ष्मी जी के अनुरोध करने पर वृंदा ने विष्णु जी को श्राप से मुक्त कर दिया, लेकिन खुद भस्म हो गईं और वहां पर एक पौधा उग आया। जिसका नाम तुलसी पड़ा। विष्णु भगवान ने उस पौधे को तुलसी का नाम दिया और कहा कि शालिग्राम नाम से मेरा ये रूप तुलसी के साथ हमेशा रहेगा। तब से ही भगवान शालीग्राम और तुलसी एक साथ रहने लगे और इनका विवाह कराया गया।Tulsi ka vivah kisse hua tha: तुलसी विवाह किससे हुआ था
तुलसी माता का विवाह भगवान शालीग्राम के साथ हुआ था।Tulsi Vivah vidhi at home: घर पर तुलसी विवाह कैसे करें
इस विवाह के दिन तुलसी के पौधे को दुल्हन के रूप में सजाया जाता है. साथ ही पौधे पर साड़ी या चुनरी ओढ़ाई जाती है. उन्हें 16 श्रृंगार भी अर्पित किया जाता है और दुल्हन का रूप दिया जाता है. इसी के साथ इस विवाह के लिए फूलों, पत्तियों और रंगोली से एक छोटा सा मंडप भी तैयार किया जाता हैTulsi vivah kiske sath hota hai: तुलसी विवाह किसके साथ होता है
इस दिन माता तुलसी का भगवान शालिग्राम से विवाह करवाया जाता है. माना जाता है कि जो व्यक्ति तुलसी विवाह का अनुष्ठान करवाता है उसे उतना ही पुण्य प्राप्त होता है, जितना कन्यादान से मिलता हैTulsi Chalisa: तुलसी चालीसा लिरिक्स
जय जय तुलसी भगवती सत्यवती सुखदानी ।नमो नमो हरि प्रेयसी श्री वृन्दा गुन खानी ॥
श्री हरि शीश बिरजिनी, देहु अमर वर अम्ब ।
हे वृन्दावनी तुम लोक कल्याण के लिए विलम्ब न करो।
॥ चौपाई ॥
धन्य धन्य श्री तलसी माता ।
श्रवण द्वारा सदैव अगोचर की महिमा गाई जाती है।
हरि के प्राणहु से तुम प्यारी ।
हरीहीँ हेतु कीन्हो तप भारी ॥
जब प्रसन्न है दर्शन दीन्ह्यो ।
तब कर जोरी विनय उस कीन्ह्यो ॥
हे प्रभु, मेरे प्रिय बनो।
दीन जानी जनि छाडाहू छोहु ॥
सुनी लक्ष्मी तुलसी की बानी ।
दीन्हो श्राप कठिन पर आनी॥
उस अयोग्य वर मांगन हारी ।
होहू विटप तुम जड़ तनु धारी ॥
सुनि तुलसी हि श्राप्यो तेहिं थमा।
करहु वास तुहू नीचन धामा ॥
दियो वचन हरि तब तत्काला ।
सुनो, तुम मुक्त हो जाओगे.
समय पै वौ रौ पति तोरा।
पुजिहौ आस वचन सत मोरा ॥
तब गोकुल मह गोप सुदामा ।
तासु भई तुलसी तू बामा ॥
कृष्ण रास लीला के माही ।
राधे शक्यो प्रेम लखी नाही ॥
दियो श्राप तुलसिह तत्काला ।
यहां तक कि पुरुष लोग भी, आप एक बच्चे के रूप में पैदा होते हैं।
यो गोप वह दानव राजा ।
ताजा सिर शंख चूड़ कहा जाता है.
तुलसी भई तासु की नारी ।
परम सति गुन रूप अगारी॥
अस द्वै कल्प बीत जब गयऊ ।
कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ ॥
तुलसी का नाम वृंदा रखा गया।
असुर जलन्धर नाम पति को ॥
करि अति द्वन्द अतुल बलधामा ।
लीन्हा शंकर से संग्राम ॥
जब निज सैन्य सहित शिव हारे ।
मरही न तब हर हरिही पुकारे ॥
पतिव्रता वृन्दा थी नारी ।
कोऊ न सके पतिहि संहारी ॥
तब जलन्धर ही भेष बनाई ।
वृन्दा ढिग हरि पहुच्यो जाई ॥
शिव हित लाहि करि कपट प्रसंगा।
कियो सतीत्व धर्म तोही भंगा ॥
जालन्धर का कर विनाश हुआ।
सुनी उर शोक उपारा ॥
तिही क्षण दियो कपट हरि टारी ।
लखी वृन्दा दुःख गिरा उचारी ॥
जलन्धर जस हत्यो अभीता ।
सोई रावन तस हरिही सीता ॥
अस प्रस्तर सम ह्रदय तुम्हारा ।
धर्म खण्डी मम पतिहि संहारा ॥
यही कारण लही श्राप हमारा ।
होवे तनु पाषाण तुम्हारा ॥
सुनी हरि तुरतहि वचन उचारे ।
दियो श्राप बिना विचारे ॥
लख्यो न निज करतूती पति को ।
छलन चह्यो जब पारवती को ॥
जड़मति तुहु अस हो जड़रूपा ।
जग मह तुलसी विटप अनूपा ॥
धग्व रूप हम शालिग्रामा ।
गंडकी नदी के मध्य में।
जो तुलसी दल हमही चढ़ इहैं ।
सब सुख भोगी परम पद पईहै ॥
बिनु तुलसी हरि जलत शरीरा ।
अतिशय उठत शीश उर पीरा ॥
जो तुलसी दल हरि शिर धारत ।
सो सहस्त्र घट अमृत डारत ॥
तुलसी हरि मन रञ्जनी हारी ।
रोग दोष दुःख भंजनी हारी ॥
प्रेम सहित निरंतर हरि भजन।
तुलसी राधा में नाही अन्तर ॥
छप्पन प्रकार के व्यंजन हैं।
बिनु तुलसी दल न हरीहि प्यारा ॥
सकल तीर्थ तुलसी तरु छाही ।
लहत मुक्ति जन संशय नाही ॥
कवि सुन्दर इक हरि गुण गावत ।
तुलसिहि निकट सहसगुण पावत ॥
बासत के पास दुरबासा धाम।
जो प्रयास ते पूर्व ललामा ॥
पाठ करहि जो नित नर नारी ।
होही सुख भाषहि त्रिपुरारी ॥
॥ दोहा॥
तुलसी चालीसा पढ़ही तुलसी तरु ग्रह धारी ।
दीपदान करि पुत्र फल पावही बन्ध्यहु नारी ॥
बेचारे हरि के सब कष्ट हरते हैं और परम प्रसन्न होते हैं।
आशिय धन जन लड़हि ग्रह बसही पूर्णा अत्र ॥
लाही अभिमत फल जगत मह लाही पूर्ण सब काम ।
जेई दल अर्पही तुलसी तंह सहस बसही हरीराम ॥
तुलसी महिमा नाम लख तुलसी सूत सुखराम ।
मानस चालीस रच्यो जग महं तुलसीदास ॥
Tulsi Vivah Chowk
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