Jun 13, 2024

संस्कृत के इन श्लोकों में छिपा है सफलता का मूल मंत्र, सक्सेस की है गारंटी

Suneet Singh

भारत में संस्कृत सबसे प्राचीन भाषा मानी जाती है। यह जितनी प्राचीन है उतनी ही वैज्ञानिक भी।

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इस भाषा में ऐसे कई श्लोक मौजूद हैं जो व्यक्ति को प्रेरणा देने का काम करते हैं। आइए देखें:

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अनारम्भस्तु कार्याणां प्रथमं बुद्धिलक्षणम्। आरब्धस्यान्तगमनं द्वितीयं बुद्धिलक्षणम्॥

कार्य को शुरू न करना बुद्धि का पहला लक्षण है। आरंभ किए गए कार्य को पूरा करना बुद्धि का दूसरा लक्षण है।

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सिंहवत्सर्ववेगेन पतन्त्यर्थे किलार्थिनः॥

जो लोग काम करना चाहते हैं, वे शेर के समान तीव्र गति से कार्य में लग जाते हैं।

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योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय। सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥

तू आसक्ति को त्यागकर, सफलताओं और विफलताओं में समान भाव लेकर सारे कर्मों को कर। ऐसी समता ही योग कहलाती है।

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अप्राप्यं नाम नेहास्ति धीरस्य व्यवसायिनः।

जिस व्यक्ति में साहस और लगन है उसके लिए कुछ भी अप्राप्य नहीं है।

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सर्वं परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम्। एतद् विद्यात् समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः॥

हमें जो भी दुःख होता है, वह हमारे बश में नहीं होता। दुःख हमेशा दूसरों के कारण ही प्राप्त होता है, मगर सुख प्राप्त करना हमेशा हमारे हाथ में होता है। हमारे खुद के प्रयासों से ही प्राप्त हो सकता है।

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संधिविग्रहयोस्तुल्यायां वृद्धौ संधिमुपेयात्।

युद्ध या शांति दोनों में समान लाभ हो, तो राजा को शांति का ही मार्ग चुनना चाहिए।

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विवेकख्यातिरविप्लवा हानोपायः।

सच और झूठ में भेद करने का निरंतर अभ्यास ही मोक्ष की प्राप्ति और अज्ञानता के नाश का उपाय है।

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