Jun 19, 2024

​मुनीर नियाज़ी का शायरी: ख़्वाब होते हैं देखने के लिए, उन में जा कर मगर रहा न करो

Suneet Singh

ये कैसा नशा है मैं किस अजब ख़ुमार में हूं, तू आ के जा भी चुका है मैं इंतिज़ार में हूं।

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कैसे बनी थी पहली ब्रेड

किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते, सवाल सारे ग़लत थे जवाब क्या देते।

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आवाज़ दे के देख लो शायद वो मिल ही जाए, वर्ना ये उम्र भर का सफ़र राएगां तो है।

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जानता हूं एक ऐसे शख़्स को मैं भी 'मुनीर', ग़म से पत्थर हो गया लेकिन कभी रोया नहीं।

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ख़्वाब होते हैं देखने के लिए, उन में जा कर मगर रहा न करो।

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मुद्दत के ब'अद आज उसे देख कर 'मुनीर', इक बार दिल तो धड़का मगर फिर संभल गया।

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ख़याल जिस का था मुझे ख़याल में मिला मुझे, सवाल का जवाब भी सवाल में मिला मुझे।

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ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं, तू ने मुझ को खो दिया मैं ने तुझे खोया नहीं।

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आदत ही बना ली है तुम ने तो 'मुनीर' अपनी, जिस शहर में भी रहना उकताए हुए रहना।

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