Jul 14, 2024

Gulzar Poetry: इश्क़ खुद तलाश लेता है जिसे बर्बाद करना होता है

Suneet Singh

आऊं तो सुबह, जाऊं तो मेरा नाम शबा लिखना, बर्फ पड़े तो बर्फ पे मेरा नाम दुआ लिखना।

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इल्जाम मेरे सर आए

जब भी आंखों में अश्क भर आए, लोग कुछ डूबते नजर आए। चांद जितने भी गुम हुए शब के, सबके इल्जाम मेरे सर आए।

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होती नहीं ये मगर, हो जाये ऐसा अगर, तू ही नज़र आए तू जब भी उठे ये नज़र।

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मेरा ख्याल है अभी, झुकी हुई निगाह में खिली हुई हंसी भी है, दबी हुई सी चाह में।

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मैं जानता हूं, मेरा नाम गुनगुना रही है वो, यही ख्याल है मुझे, के साथ आ रही है वो।

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तेरे इश्क़ में..

तेरे इश्क़ में तू क्या जाने कितने ख्वाब पिरोता हूं, एक सदी तक जागता हूं मैं एक सदी तक सोता हूं।

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आयत की तरह मिल जाये कहीं..

गुल पोश कभी इतराये कहीं महके तो नज़र आ जाये कहीं, तावीज बनाके पहनूं उसे आयत की तरह मिल जाये कहीं।

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जहां तक तुम्हारे कदम ले चलेंगे

पता चल गया है के मंज़िल कहां है, चलो दिल के लंबे सफ़र पे चलेंगे। सफ़र ख़त्म कर देंगे हम तो वहीं पर, जहां तक तुम्हारे कदम ले चलेंगे।

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इश्क़ की तलाश में क्यों निकलते हो तुम, इश्क़ खुद तलाश लेता है जिसे बर्बाद करना होता है।

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