May 8, 2024
'चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले..', रूह को छू लूंगे फैज़ अहमद फैज़ के ये शेर
Suneet Singh
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा, राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा।
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History Of Ice
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है, लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है।
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कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब, आज तुम याद बे-हिसाब आए।
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दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के, वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के।
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तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं, किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं।
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गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले, चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले।
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आए तो यूँ कि जैसे हमेशा थे मेहरबान, भूले तो यूँ कि गोया कभी आश्ना न थे।
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दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया, तुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के।
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न गुल खिले हैं न उन से मिले न मय पी है, अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है।
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