Jul 17, 2023
इसरो ने एक नया इतिहास रचते हुए 14 अप्रैल 2023 को चंद्रयान-3 का सफल प्रक्षेपण किया।
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चंद्रयान-3 चांद के साउथ पोल पर लैंड करेगा और यहां से आवश्यक डेटा एकत्र करेगा। मिशन कामयाब रहा तो भारत चार चुनिंदा देशों में शामिल हो जाएगा।
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अपने गठन के बाद से ही इसरो ने एक से बढ़कर एक कामयाबी दर्ज की है, ऐसे में पाकिस्तान की अंतरिक्ष एजेंसी सुपारको का जिक्र करना जरूरी है।
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आज इसरो के मुकाबले सुपारको की तुलना करना भी बेमानी है। इसरो कामयाबी की बुलंदियों पर है तो पाकिस्तान का सुपारको दम तोड़ रहा है। सुपारको की शुरुआत धमाकेदार हुई थी।
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भारत से कई साल पहले पाकिस्तानी स्पेस प्रोग्राम शुरू हुआ था। सुपारको की स्थापना 1961 में हुई। जबकि इसरो की स्थापना करीब इसके आठ साल बाद 1969 में हुई थी।
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16 सितंबर 1961 को कराची में 'सुपारको' यानी पाकिस्तानी 'स्पेस एंड अपर एटमॉस्फियर रिसर्च कमीशन' की स्थापना हुई। इसमें अमेरिका ने भी पाकिस्तान की मदद करनी शुरू की।
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पाकिस्तान ने अपना पहला रॉकेट साल 7 जून 1962 में छोड़ा था। इस रॉकेट का नाम 'रहबर-1' था। सुपारको के इस रॉकेट का मुख्य मकसद मौसम के बारे में जानकारी जुटाना था। भारत इसके करीब एक साल बाद ऐसा कर सका था।
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इस रॉकेट लॉन्चिंग के बाद पूरे उपमहाद्वीप में पाकिस्तान ऐसा करने वाला पहला मुल्क बन गया था। साथ ही पूरे एशिया महाद्वीप में पाकिस्तान ऐसा तीसरा देश बना।
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बाद में पाकिस्तान चीन की बैसाखियों पर चलने लगा। पाकिस्तान के पहले सेटेलाइट बद्र-1 को 1990 में चीन से अंतरिक्ष में लॉन्च किया गया। इसके बाद सिलसिला थम सा गया।
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फिर यूएस की मदद से 2001 में पाकसैट-1ई की लॉन्चिंग हुई, पर सेटेलाइट पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ी नाकामयाबी साबित हुई। सुपारको दो साल में ही इसपर नियंत्रण खो बैठा।
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सुपारको के नाकाम होने के पीछे ये भी वजह ये रही कि इसके प्रमुख भी वरिष्ठ फौजी अफसर होने लगे। रिसर्च का काम धीमा होता गया। 2001 के बाद से सुपारको ठंडा पड़ गया।
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