Mar 26, 2024
बेंगलुरु की प्यास बुझाने वाले कृष्णाराज सागर और काबिनी ताल में अभी गर्मी की शुरुआत में ही 20 फीसद पानी की कमी देखने को मिल रही है। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ेगी, यह समस्या और बढ़ सकती है।
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अभी दुनिया एक जबरदस्त क्लाइमेट चेंज के दौर से गुजर रही है। इस क्लाइमेट चेंज का बड़ा असर मानसून के पैटर्न पर पड़ा है। बेंगलुरु में इतनी बारिश ही नहीं हो रही कि ग्राउंड वाटर टेबल रिचार्ज हो सके।
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बैंगलोर वाटर सप्लाई एंड सीवरेज बोर्ड शहर के बाहरी इलाके में अभी तक तक पानी की पाइपलाइन नहीं बिछा पाया है। मौजूदा जल संकट में शहर का बाहरी इलाका पूरी तरह से टैंकर भरोसे है।
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शहर में जल आपूर्ति की व्यवस्था अच्छी नहीं है, जिसके कारण लोगों को टैंकर के भरोसे रहना पड़ता है। टैंकर के जरिए जल आपूर्ति नियमित नहीं है और रेग्यूलेटिड भी नहीं।
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सरकारें शुरुआत में तो शहर की पानी की समस्या को सुलझाने का वादा करती हैं। लेकिन पीने के पानी और स्वच्छता के ज्यादातर वादे अखबारों के पन्नों तक ही सिमटकर रह जाते हैं।
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जिस जगह आज बेंगलुरु में बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें नजर आती हैं, वहां कभी खूबसूरत जल स्रोत थे। आज हमने तालाबों को भरकर बिल्डिंगें खड़ी कर दी हैं और वाटर टैंकर जहां-तहां पानी खोज रहे हैं।
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प्राकृतिक जल स्रोतों को हम बर्बाद कर चुके हैं। इसके बाद जमीन से भी हम जरूरत से ज्यादा पानी खींच रहे हैं। इससे शहर के ज्यादातर इलाकों में जलस्तर बहुत नीचे चला गया है। वाटर हार्वेसिंट की तकनीकों का इस्तेमाल नहीं हो रहा।
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पानी का स्तर नीचे जाने की वजह से अब 800-900 फीट गहरे बोरवेल खोदे जा रहे हैं। जबकि दो दशक पहले तक आसानी से 150-200 फीट की गहराई पर पर्याप्त पानी मिल जाता था।
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दक्षिण भारत के साथ एक समस्या जमीन के अंदर उसकी बनावट से जुड़ी भी है। यहां की जमीन पथरीली है, जिसके कारण यह ज्यादा पानी रोककर नहीं रख पाती है। इसलिए यह स्रोत बड़ी जल्दी खत्म हो जाता है।
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