Jul 30, 2023
ढोलक गायन और नृत्य के साथ बजाया जाने वाला एक प्रमुख वाद्य यंत्र है। इतना ही नहीं पुराने समय में इसका उपयोग दुश्मनों पर प्रहार, खूंखार जानवरों को भगाने के लिए भी किया जाता था।
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दिल्ली से लगभग 160 किलोमीटर दूर, उत्तर प्रदेश में गंगा के पास स्थित, अमरोहा में देश सहित विश्व में लंदन-न्यूयार्क तक एक अलग पहचान रखता है, वजह है यहां की ढोलक।
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आम के बाग की बहुतायत होने की वजह से अमरोहा में ढोलक कारोबार का जन्म हुआ। यहां कि फैक्ट्री में बनने वाली ढोलकों की बात और उनका अंदाज बड़ा निराला है।
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यहां पर कुछ ऐसी ढोलक बनाई जाती हैं, जो पूरे देश में कहीं नहीं मिलती। यहां मुख्य रूप से ढोलक और तबला बनाने वाले हुनरमंद कारीगर काम करते हैं।
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हर साल अमरोहा में करीब 150 करोड़ का कारोबार ढोलक से होता है। अमरोहा से हर साल करीब 6 करोड़ रुपये की ढोलक का निर्यात होता है।
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इस जिले में ढोलक बनाने की छोटी-बड़ी 350 से अधिक यूनिट हैं। काम की जटिलता के आधार पर प्रतिदिन कामगर 1,200 रुपये तक कमाते हैं। करीब 10 हजार लोग इस कारोबार से जुड़े हैं।
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ढोलक आम, शीशम, सागौन या नीम की लकड़ी से बनाई जाती है। एक ढोलक को बनाने में 5 से 6 दिन का समय लगता है। इसकी शुरुआत लकड़ी की कटाई से होती है।
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ढोलक को पोला करके उसे संपूर्ण ढांचे का रूप दिया जाता है। लकड़ी के दोनों खोखले सिरों पर बकरे की खाल डोरियों से कसी जाती है। इस डोरी में छल्ले रहते हैं, जो ढोलक का स्वर मिलाने में काम आते हैं।
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ढांचे में डालने के बाद इसके रंगाई-पुताई से लेकर सुर-ताल के लिए फाइनल टच दिया जाता है। सूत की रस्सी के के जरिए इसको खींचकर कसा जाता है। अब सूत की रस्सियों की जगह नट-बोल्ट लगी ढोलक भी खूब बिकती है।
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