अमेरिका समर्थित सरकार को बेदखल करके अफगानिस्तान में तालिबान ने फिर से कब्जा किया।
अफगानिस्तान में क्रिकेट लोकप्रिय है। राशिद खान और मोहम्मद नबी सहित ऐसे कई क्रिकेटर हैं, जिनके खेल की दुनिया दीवानी है।
आधुनिक तालिबानी आतंकियों में क्रिकेट को लेकर सकारात्मक रवैया है। मगर चिंता है कि सत्ता में वह मौजूदा खिलाड़ियों पर अत्याचार कर सकते हैं। पूरी दुनिया को इसका डर है।
तालिबान ने अफगानिस्तान में सभी तरह के खेलों पर प्रतिबंध लगाया था। 2000 में तालिबान ने क्रिकेट को मनोरंजक करार दिया तो क्रिकेट बढ़ा। युवा तालिबानी आतंकियों की खेल में दिलचस्पी बढ़ी।
अफगानिस्तान की जीत पर तालिबानी आतंकी आसमान में बंदूक चलाकर गोलियां दागते हैं और खुशी जाहिर करते हैं। राष्ट्रीय टीम के कई खिलाड़ी ऐसे इलाके के हैं जो तालिबान के कब्जे में रहा।
अफगानिस्तान में क्रिकेट की शुरुआत 80 के दशक में हुई। बाद में 'फादर ऑफ अफगान क्रिकेट' कहे जाने वाले ताज मलूक खान ने पेशावर के काचा गारी शरणार्थी कैंप के बाहर ही अफगान क्रिकेट क्लब बनाया।
90 के दशक तक छोटे-छोटे झुंड में लोगों की अफगानिस्तान में वापसी हुई तो वो क्रिकेट साथ लेकर आए। 1995 में अफगानिस्तान क्रिकेट फेडरेशन का गठन हुआ।
अफगानिस्तान को 22 जून 2017 को आईसीसी ने पूर्ण सदस्य बनाया। टेस्ट मैच का दर्जा भी मिला। इस देश में 320 क्रिकेट क्लब और 6 टर्फ विकेट हैं।
अफगानिस्तान को इस साल टी20 विश्व कप में हिस्सा लेना है, लेकिन तालिबान के कब्जे के बाद उसके हिस्सा लेने पर संकट के बादल मंडराए।
क्रिकेट की सर्वोच्च संस्था आईसीसी की अफगानिस्तान क्रिकेट पर नजरें बनी हुई हैं। वह लगातार अपडेट ले रहा है कि देश में क्या हो रहा है।
महिलाओं के क्रिकेट खेलने पर तालिबान पाबंदी लगा सकता है, जिसका असर आईसीसी के पूर्णकालिक सदस्य बनने पर हो सकता है। अफगानिस्तान पर टेस्ट दर्जा गंवाने का खतरा भी मंडरा सकता है।
2003 में जिस तरह से आतंक से उबारकर अफगानिस्तान को शांति की राह पर लाने के लिए क्रिकेट ने अहम भूमिका अदा की थी। 20 साल बाद वह अफगानिस्तान की भूमिका पर सवाल उठाएगा, यह देखने वाली बात होगी।
अब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा जमा लिया है। आने वाले दिनों में पता चलेगा कि क्रिकेट के प्रति इनका रवैया बदलेगा या फिर समर्थन जारी रहेगा। अब देखना होगा कि तालिबानी आतंकी अफगानिस्तान की जीत पर जश्न मनाएंगे या नहीं।
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