भारतीय फुटबॉल को किसी एक खिलाड़ी ने पहचान दिलाई हैं, तो वह हैं बाईचुंग भूटिया। भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व स्ट्राइकर बाईचुंग भूटिया का जन्म 1976 में सिक्कम के तिनकिताम में हुआ था।
बाईचुंग भूटिया के माता-पिता सिक्कम में खेती करते थे। उनके पिता को उनका फुटबॉल खेलना पसंद नहीं था। पिता की मृत्यु के बाद उनके चाचा ने उन्हें फुटबॉल खेलने में सपोर्ट किया था।
बाईचुंग भूटिया ने महज नौ साल की उम्र में फुटबॉल स्कॉलरशिप जीती थी। इसके बाद उन्होंने राजधानी गैंगटॉक में तशी नामग्याल ट्रेनिंग अकादमी ज्वॉइन की। साल 1992 में यहां उन्हें बेस्ट प्लेयर का अवॉर्ड मिला।
बाईचुंग भूटिया ने 1992 के सुब्रोतो कप में 'बेस्ट प्लेयर' का अवॉर्ड जीता था। यहां भारत के पूर्व गोलकीपर भास्कर गांगुली की नजर उन पर पड़ी और कलकत्ता फुटबॉल में शामिल होने में मदद की।
साल 1993 में 16 साल की उम्र में उन्होंने ईस्ट बंगाल फुटबॉल क्लब ज्वॉइन किया। इसके लिए उन्होंने अपना स्कूल तक छोड़ दिया था।
बाईचुंग भूटिया ने साल 1996 में नेहरू कप के जरिए इंटरनेशनल फुटबॉल में डेब्यू किया था।
साल 1999 में उन्होंने यूरोप की तरफ रूख किया। उन्होंने इंग्लैंड के क्लब बरी के साथ करार किया। यूरोप के किसी क्लब के साथ करार करने वाले वह पहले भारतीय थे।
बाईचुंग भूटिया तीन साल बाद वापस भारत लौट आए। इसके बाद उन्होंने मोहन बगान और ईस्ट बंगाल के लिए मैच खेले थे।
बाईचुंग भूटिया ने दो बार नेहरू कप जीता। साल 2008 में उन्होंने FC चैलेंज कप जीता था। इसके अलावा उनके नेतृत्व में साल 1984 के बाद भारत फुटबॉल में पहली बार एशिया कप खेला।
बाईचुंग भूटिया को पद्मश्री और अर्जुन अवॉर्ड जैसे सम्मान मिल चुके हैं। साथ ही एक स्टेडियम को भी उनका नाम दिया गया है।
बाईचुंग भूटिया ने साल 2011 में फुटबॉल से संन्यास ले लिया था। उन्हें 1998 में अर्जुन पुरस्कार और 2008 में पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
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