हिंदुस्तान में पहली बार बेरयान का जिक्र नुस्खा-ए-शाहजहानी में मिलता है, जिसमें 17वीं सदी के मुगल बादशाह शाहजहां के दौर की रेसिपी है।
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बिरयानी ईरान से आई है। इसका नाम फारसी शब्द 'बिरिंज बिरियान' से निकला है जिसका मतलब है भूना हुआ चावल।
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ईरान में बिरयानी को देग यानी हांडी में दम यानी धीमी आंच पर पकाया जाता है। इसमें चावल परतों में रखे जाते हैं और मसालों का खासा प्रयोग होता है।
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एक रिपोर्ट के अनुसार ईरान में अब चावल की बिरयानी की जगह रुमाली रोटी और मीट के कॉम्बिनेशन ने ले ली है।
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ये पक्का नहीं है कि मुगल ही बिरयानी को भारत में लाए। लेकिन अब भारत में इसके साथ स्थानीय स्वाद जुड़ गए हैं।
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यहां की बिरयानी को अफगानी स्वाद वाली माना जाता है जिसके तार अहमद शाह अब्दाली जुड़े हैं।
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यहां मिलने वाली बिरयानी का स्वाद मुरादाबादी है। वहीं हैदराबादी जायके के शौकीन भी खूब हैं।
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रेस्तरां में बिरयानी भले ही खास मेन्यू हो लेकिन ये स्ट्रीट फूड के तौर पर भी पहचान बना चुकी है।
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हालांकि अफसोस इस बात का है कि बिरयानी अब पारंपरिक स्वाद जैसी नहीं बन रही। इसे बस फ्राइंग पैन बिरयानी ही कहा जा सकता है।
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