आयुष्मान खुराना लीक से हटकर फिल्में करने के लिए पहचाने जाते हैं। उनकी फिल्मों के विषय हमारे समाज से होते हैं लेकिन उन पर अक्सर चर्चा नहीं होती।
आयुष्मान खुराना अपनी पहली ही फिल्म 'विक्की डोनर' में स्पर्म डोनर बने थे। 2012 में आई इस फिल्म ने ऐसा विषय उठाया था जिसे लोग गलत नजर से देखते हैं। हालांकि फिल्म खूब पसंद की गई।
यौन समस्याओं पर बात करना भी हमारे समाज में अभिशाप माना जाता है लेकिन इस विषय को जब आयुष्मान पर्दे पर ले आए तो सिनेमाघरों में युवाओं का तांता लग गया।
आम परिवारों की एक ऐसी कहानी उठाई जिसकी कल्पना सिनेमाप्रेमी कर भी नहीं सकते थे। अधिक उम्र में एक औरत के मां बनने पर उसके परिवार में क्या माहौल होता है, वह इस फिल्म में दिखाया।
अंधाधुन, ड्रीम गर्ल, बाला जैसी फिल्मों ने आयुष्मान ने ऐसे रोल किए जो पर्दे पर पहले कभी नहीं आए। यह रोल फिल्म के हीरो को सर्वश्रेष्ठ दिखाने की कोशिश नहीं करते।
किरदारों के चयन के अलावा आयुष्मान खुराना पर्दे पर इतने सहज रहते हैं कि आम दर्शक उनसे जुड़ाव महसूस करता है।
आयुष्मान खुराना ने बॉलीवुड फिल्मों के विषयों के चुनाव में विविधता लाने का काम किया। अब कंटेट आधारित फिल्में बनती हैं जिसमें आयुष्मान का अहम योगदान है।
मुंबई की चकाचौंध से इतर फिल्मों में अब छोटे शहरों की छलक दिखने लगी है। कानपुर, लखनऊ, बनारस, मथुरा, बरेली जैसे शहरों की कहानियों को आयुष्मान पर्दे पर लाए।
आयुष्मान ने विषय, शहर और रोल के माध्यम से हिंदी सिनेमा में नया ट्रेंड सेट किया है जिसे कई फिल्ममेकर फॉलो कर रहे हैं।
बीते कुछ वर्षों में स्टार वैल्यू पीछे हुई है और कंटेट सिनेमा आगे आया है। आयुष्मान खुराना ने इसमें अहम रोल अदा किया है।
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