Mar 21, 2024
हम जितना ऊपर जाते हैं, उतना सूरज के करीब होते हैं, ऐसे में तो गर्मी बढ़नी चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं है। ऊपर और भीषण ठंड का सामना करना पड़ता है।
Credit: NASA
जैसे-जैसे ऊपर जाते हैं तापमान घटने लगता है। धरती से बाहर अंतरिक्ष में तापमान माइनस में चला जाता है और वहां कड़ाके की ठंड होती है। ऐसा आखिर क्यों होता है।
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सामान्य समझ तो यही कहती है कि ऊपर जाने के साथ ही हम सूरज के नजदीक जाएंगे और उसकी गर्म किरणें हमें और गर्म करेंगी।
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सूर्य गैस और आग का गोला है, जिसके केंद्र में तापमान करीब 27 मिलियन डिग्री फॉरेनहाइट और सतह पर 10,000 डिग्री होता है। सूर्य से पृथ्वी की तुलना में ज्यादा करीब रहने वाले अंतरिक्ष का तापमान -455 डिग्री फॉरेनहाइट के आसपास रहता है।
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जब सूर्य का विकिरण हमारे वायुमंडल में अणुओं से टकराता है और गर्म होता है, तो वे उस अतिरिक्त ऊर्जा को अपने आसपास के अणुओं तक पहुंचाते हैं। ये प्रक्रिया चलती रहती है और तापमान बढ़ने लगता है।
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अंतरिक्ष में वैक्यूम यानि निर्वात की स्थिति रहती है। इसलिए सूर्य की किरणों का असर वहां नहीं होता। साथ ही अंतरिक्ष में हवा का नहीं होना भी ठंड का सबसे बड़ा कारण है।
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अंतरिक्ष एक निर्वात है जिसका अर्थ है कि ये मूल रूप से खाली है, इसमें कुछ नहीं है। हवा बिल्कुल भी नहीं है। अंतरिक्ष में गैस के अणु बहुत कम हैं और एक दूसरे से नियमित रूप नहीं टकराते।
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जब सूर्य इन्हें इंफ्रारेड तरंगों से गर्म करता है, तब भी उस गर्मी को आगे स्थानांतरित करना संभव नहीं होता। गुरुत्वाकर्षण की उपस्थिति में होने वाला गर्मी हस्तांतरण जिसे संवहन कहते हैं, वह अंतरिक्ष में नहीं होता।
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