रामनामी समाज ने अपने शरीर को ही बना लिया राम मंदिर, अनोखी है वजह
Aditya Sahu
रामनामी संप्रदाय
राम अयोध्या में ही नहीं बल्कि कण-कण में निवास करते हैं। छत्तीसगढ़ के रामनामी समाज के लिए उनकी संस्कृति का अहम हिस्सा 'राम का नाम' है।
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'राम' नाम का गोदना
राम भक्ति इनके अंदर इस कदर है कि इन्होंने अपने पूरे शरीर पर ‘राम नाम’ का गोदना गुदवा लिया है।
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बदन पर रामनामी चादर
रामनामी समाज की पहचान है.. शरीर के हर हिस्से पर राम नाम का गोदना, बदन पर रामनामी चादर और सिर पर मोरपंख की पगड़ी तथा घुंघरू।
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जिंदगी का एकमात्र मकसद 'श्रीराम'
इनकी जिंदगी का एकमात्र मकसद मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की भक्ति और गुणगान करना है।
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सतनामी युवक ने की स्थापना
छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा के एक छोटे से गांव 'चारपारा' में एक सतनामी युवक परशुराम ने साल 1890 के आसपास इस संप्रदाय की स्थापना की थी।
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रामनामी समाज को लेकर मतभेद
जहां कई लोग रामनामी परंपरा को भक्ति आंदोलन से जोड़ते हैं। वहीं इसे सामाजिक और दलित आंदोलन से जोड़कर देखने वालों की भी कमी नहीं है।
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शुद्ध शाकाहारी और नशे से दूर
इस समाज के लोग शुद्ध शाकाहारी होते हैं। नशा जैसे व्यसनों से दूर रहते हैंं और दहेज जैसी परम्परा के कट्टर विरोधी हैं। संप्रदाय के अधिकांश लोग खेती करते हैं।
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जीभ में भी गुदवाते हैं 'राम'
रामनामी समाज के लोग सिर से लेकर पैर तक, यहां तक कि जीभ व तलवे में भी राम नाम गुदवाते हैं।
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नई पीढ़ी हो रही परंपरा से दूर
हालांकि अब रामनामियों की नयी पीढ़ी राम नाम गुदवाने की अपनी परम्परा से दूर हो रही है। नयी पीढ़ी मात्र ललाट या हाथ पर ही राम नाम गुदवा कर किसी तरह परंपरा का निर्वाह कर लेना चाहती है।
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