​मकर संक्रान्ति का पतंग से क्‍या कनेक्‍शन है, 99% लोग नहीं जानते​

Shaswat Gupta

Jan 14, 2025

​मकर संक्रान्ति का उल्‍लास​


आज देश भर में हर्षोल्‍लास के साथ मकर संक्रान्ति का पर्व मनाया जा रहा है। मकर संक्रान्ति के दिन लोग खिचड़ी बनाकर सूर्य देवता को प्रसाद के रूप में अर्पित करते हैं। इसके बाद लोग बड़े ही आनन्‍द के के साथ पतंगबाजी के कार्यक्रमों में भी बढ़-चढ़कर हिस्‍सा लेते हैं।

Credit: Social Media/Istock

​मकर संक्रान्ति के विविध नाम​


मकर संक्रान्ति का ये त्‍योहार देश के अलग-अलग हिस्‍सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। देश में इस पर्व को खिचड़ी, पोंगल और उत्‍तरायण के नाम से जाना जाता है।

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​पतंगबाजी की प्रथा​



मकर संक्रान्ति के इस पर्व पर देश भर में पतंगबाजी के विशाल आयोजन होते हैं। मगर क्‍या आपने कभी सोचा है कि, मकर संक्रान्ति का पतंग से क्‍या कनेक्‍शन है ? अगर आपको नहीं पता है तो आज हम आपको इस सवाल का जवाब देंगे।

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​भगवान राम ने उड़ाई थी पहली पतंग​


मकर संक्रान्ति पर पतंग उड़ाने का धार्मिक महत्व है। ऐसी मान्‍यता है कि, ये परंपरा भगवान श्रीराम के द्वारा शुरू हुई। तमिल की तन्नाना रामायण के मुताबिक, मकर संक्रान्ति के दिन भगवान राम ने पतंग उड़ाई थी और वो पतंग इंद्रलोक में चली गई थी, तभी से भगवान राम द्वारा शुरू की गई ये परंपरा लोग निभाते आ रहे हैं।

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​क्‍या कहती हैं 'पतंग?'​


पकहा जाता है कि, खुशी, उल्लास, आजादी और शुभ संदेश की सबसे बड़ी वाहिनी पतंग होती है। नया साल शुरू होते ही इस दिन से घर में सारे शुभ काम शुरू हो जाते हैं। वे काम पतंग की तरह ही सुंदर, निर्मल और उच्‍च कोटि के हों इसलिए पतंग उड़ाई जाती है।

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​नई सोच का उद्भव​


कुछ लोग मानते हैं कि, पतंग उड़ाने से दिल खुश और दिमाग संतुलित रहता है। पतंग को ऊंचाई तक उड़ाना और कटने से बचाने के लिए हर पल दिमाग के पेच लड़ाना नई सोच की प्रेरणा विकसित करता है इसलिए पुराने जमाने से लोग पतंग उड़ा रहे हैं।

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​प्रकाश यानी रोशनी के लिए​


चूंकि, सर्दी के दिनों में सूरज की रोशनी बहुत जरूरी होती है। ऐसे में ये भी माना जाता है कि, पतंग उड़ाने से सूर्यदेव भी प्रसन्‍न होते हैं और इस कारण लोग घंटों सूर्य की रोशनी में पतंग उड़ाते हैं। इसी बहाने उनके शरीर को विटामिन-डी भी मिल जाता है और वे धूप खांसी, जुकाम से भी बचे रहते हैं।

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​एकता सिखाती पतंग​


पतंग अकेले उड़ाई नहीं जा सकती है, एक शख्‍स मांझा पकड़ेगा तो दूसरा डोर थामेगा। एक छोटी सी पतंग न केवल लोगों को मांझेरूपी सूत्र में पिरोए रखती है बल्कि उन्‍हें एकता का पाठ पढ़ाती है।

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​डिस्‍क्‍लेमर​


इस खबर में बताए गए सभी कारण तमाम कथाओं, मान्‍यताओं और किंवदंतियों पर आधारित है। अत: टाइम्‍स नाउ नवभारत इनकी सत्‍यता की पुष्टि नहीं करता है। कोई भी जानकारी/दावा/तथ्‍य अमल में लाने से पूर्व आवश्‍यक जांच-पड़ताल कर लें।

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