Oct 14, 2023

पहले कान पर नहीं हाथ से पकड़ना पड़ता था चश्मा, 700 साल पुराना है इतिहास​

किशन गुप्ता

​आज के समय में कोई चश्मा शौक के लिए तो कोई साफ देखने के लिए लगाता है।​​

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13वीं शाताब्दी में हुई थी खोज

इसकी खोज 13वीं सदी में की गई थी, जो इटली के अलैसेंद्रो डि स्पिना और सल्विनो डिली आर्म्टी ने की थी। उस दौरान चश्मा पहनने वालों को विद्वान समझा जाता था।

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पढ़ाई की वजह से खराब हो जाती थी आंखें

इसका कारण था कि जो अधिक पढ़ाई में लीन रहते थे, उनकी आंखें खराब हो जाती थी तो वे चश्मा लगा लिया करते थे।

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जमीन पर रखने के हिसाब से डिजाइन किया गया था चश्मा

उस समय चश्मे को जमीन पर रखने के हिसाब से डिजाइन किया गया था। तब चश्मे को हाथ से पकड़ा जाता था।

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नाक से फिसल जाया करता था पहले वाला चश्मा

लेकिन ये चश्मा नाक से फिसल जाया करता था और इस्तेमाल करने के लिए हाथ से पकड़ना पड़ता था।

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17वीं शाताब्दी के अंत तक ढूंढा गया समाधान

फिर 17वीं सदी के अंत तक इसका समाधान ढूंढ लिया गया और स्थिरता के लिए लेंस पर रिबन लगाया गया, जिसे लोग कानों के चारों ओर लपेट लिया करते थे।

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फिर आया बाइफोकल लेंस ​

इसके बाद बेंजामिन फ्रैंकलिन ने बाइफोकल लेंस का अविष्कार किया, जो अमेरिका के संस्थापकों में से एक थे।

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देखने की समस्या से लोगों को मिला छुटकारा

इससे निकट दृष्टि दोष और दूर दृष्टि दोष से पीड़ित लोगों को काफी मदद मिली। यह दौर 19वीं शाताब्दी के पहले तक चला।

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​औद्योगिक क्रांति ने लाया वर्तमान चश्मे का प्रारूप​

लेकिन औद्योगिक क्रांति ने चश्मे में फ्रेम, लेंस और कंपोनेंट लगा दिए, जिसका प्रारूप वर्तमान में देखने को मिलता है।

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