Nov 26, 2022
शादी जहां दो परिवारों का मिलन होता है। हालांकि, शादी के बाद रोज-रोज के झगड़े, तकरार या अन्य कारण से पति-पत्नी अलग होना चाहते हैं तो तलाक का प्रावधान है।
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हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13B में आपसी सहमति से तलाक लेने का प्रावधान है। साल 1976 में संविधान में इसके लिए संशोधन किया गया है।
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आपसी सहमति से तलाक लेने की पहली शर्त है कि पति-पत्नी एक साल से अलग रह रहे हो।
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पति और पत्नी की बीच यदि सुलह की कोई गुंजाइश नहीं है तो दोनों तलाक की अर्जी डाल सकते हैं।
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फैमिली कोर्ट मे तलाक की अर्जी डालने के बाद कोर्ट छह महीने का समय देता है। इस दौरान पति और पत्नी अर्जी वापस ले सकते है। पति-पत्नी चाहे तो छह महीने की अवधि को कम करने के लिए भी अर्जी दायर कर सकते हैं।
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फैमिली कोर्ट में पहली याचिका डालने के 18 महीने के अंदर दूसरी याचिका डाल सकते हैं। 18 महीने के अंदर दूसरा प्रस्ताव न लाने पर अदालत तलाक का आदेश पारित नहीं करती है।
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18 महीने से ज्यादा वक्त होने पर एक बार फिर पहली याचिका डालनी होगी। दूसरी याचिका के दौरान कोई एक पक्ष अर्जी वापस लेता है तो जुर्माना लगाया जा सकता है।
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अदालत जब तक पूरी तरह से सहमत न हो कि पति-पत्नी के बीच समझौता नहीं हो सकता तब तक आदेश पारित नहीं होता। जांच-परख के बाद कोर्ट अंतिम चरण में तलाक का आदेश पारित कर सकता है।
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तलाक के लिए शादी का प्रमाण पत्र, पति-पत्नी का पता, परिवार की जानकारी, शादी की फोटोग्राफ, तीन साल के आयकर दस्तावेज, सैलेरी स्लिप, संपत्ति का विवरण, एक साल से अलग रहने के सबूत देने होंगे।
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