Jan 15, 2023
By: लवीना शर्मादिन में सोलह श्रृंगार, शाम को दुल्हन, रात में शादी और सुबह विधवा। शादी को लेकर हर किन्नर की यही कहानी है।
किन्नरों के विवाहोत्सव का आयोजन तमिलनाडु में होता है। दरअसल यहां तमिल नववर्ष की पहली पूर्णमासी को किन्नरों के विवाह का उत्सव शुरू होकर 18 दिनों तक चलता है।
किन्नर 17वें दिन अपने भगवान इरावन के साथ ब्याह रचाते हैं और इस दिन किन्नर दुल्हन की तरह सजते हैं।
किन्नरों के विवाह के बाद जश्न मनाया जाता है और उसके बाद इनके भगवान इरावन को पूरे शहर में घुमाया जाता है।
जिन देवता से किन्नर की शादी होती है उनकी मूर्ति को शादी के अगले दिन तोड़ दिया जाता है। इसके साथ ही किन्नर अपना श्रृंगार उतारकर एक विधवा की तरह विलाप करने लगते हैं।
महाभारत के युद्ध में हिस्सा लेने से पहले पांडवों ने मां काली की पूजा की और पूजा के बाद इन्हें एक राजकुमार की बलि देनी थी। बलि के लिए कोई भी तैयार नहीं हुआ। मगर इरावन तैयार हो गया, लेकिन उसकी एक शर्त थी कि वह बिना शादी किए बलि पर नहीं चढ़ेगा।
अब सवाल ये था कि ऐसे राजकुमार से कौन शादी करेगा, जिसको अगले ही दिन मरना है। तब भगवान कृष्ण स्वयं मोहिनी रूप धारण करके आ गए और इन्होंनें इरावन से विवाह किया। अगले दिन सुबह इरावन की बलि दे दी गई और श्री कृष्ण ने विधवा बनकर विलाप किया।
इस घटना को याद करके ही किन्नर एक दिन के लिए विवाह करते हैं और शादी के अगले दिन अपना श्रृंगार मिटाते हुए मंगलसूत्र तोड़ देते हैं और सफेद कपड़े पहनकर जोर-जोर से अपनी छाती पीटकर रोते हैं।
तमिलनाडु में इरावन देवता के कई मंदिर हैं, लेकिन सबसे प्राचीन और मुख्य मंदिर विल्लुपुरम जिले के कूवगम गांव में है जिसे श्री कूथान्दावर मंदिर के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इरावन देवता अर्जुन और नाग कन्या उलुपी के पुत्र थे।
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