Feb 12, 2025
By: Medha Chawlaआज के समय में कलयुग का दूसरा चरण चल रहा है, जिसका प्रभाव हर तरफ देखने को मिल रहा है। ऐसे में आज भी पृथ्वी पर एक ऐसा धाम है जहां पर कलियुग का आगमन नहीं हुआ है।
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उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में मौजूद नैमिषारण्य धाम इस युग का वो धाम है जहां पर कलयुग का प्रकोप देखने को नहीं मिलता है।
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गोमती नदी के तट पर स्थित नैमिषारण्य को नैमिष या नीमषार के नाम से भी जाना जाता है। नैमिषारण्य का अर्थ है ऐसा वन क्षेत्र जहां भगवान का वास है।
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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कलियुग के प्रभाव से बचने के लिए 88,000 ऋषि-मुनियों ने एक स्थान पर रहकर तप किया था।
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ऋषि-मुनियों की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा ने इस स्थान को कलियुग के दोष से मुक्त किया था। ये घटना महाभारत के युद्ध के बाद की है।
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इस भूमि को पृथ्वी का केंद्र भी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान पर चक्र का नेमि गिरा था जिस वजह से इसका नाम नैमिषारण्य है और इसे चक्रतीर्थ भी कहा जाता है।
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इस स्थान का उल्लेख श्रीमद्भागवत महापुराण, महाभारत, वायु पुराण, वामन पुराण, पद्म पुराण, शिव पुराण, देवी भागवत पुराण, यजुर्वेद का मंत्र भाग श्वेताश्वर उपनिषद्, प्रश्नोपनिषद और अन्य में मिलता है।
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये वही स्थान है जहां पर ऋषि दधीचि ने लोक कल्याण और असुरों के नाश के लिए अपनी हड्डियां देवराज इंद्र को दान की थीं।
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नैमिषारण्य धाम में 84 कोस परिक्रमा की प्राचीन प्रथा है। यहां हर साल फाल्गुन मास की अमावस्या के बाद की प्रतिपदा तिथी से लेकर पूर्णिमा तक परिक्रमा चलती है।
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