जटायु जानते थे रावण कितना शक्तिशाली है लेकिन तब भी उन्होंने हार नहीं मानीं।
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वो अपने जीवन के आखिरी क्षण तक रावण से लड़ते रहे।
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भगवान राम ने किया जटायु का अंतिम संस्कार
माता सीता को बचाते हुए अपने प्राणों की आहुति देने वाले पक्षीराज जटायु जी को पिता-तुल्य स्थान देते हुए प्रभु राम ने अपने हाथों से उनका अग्नि-संस्कार किया और फिर इसके बाद दोनों भाइयों ने गोदावरी के तट पर जाकर दिवंगत जटायु जी को जलांजलि दी थी।
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जटायु से हमें जीवन की सबसे बड़ी सीख मिलती है।
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जटायु ने हमें ये सिखाया कि हमेशा गलत का विरोध करना चाहिए।
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सब जानते थे
जटायु अच्छी तरह जानते थे कि वे रावण से जीत नहीं सकेंगे, लेकिन वृद्ध होकर भी उन्होंने माता सीता के अपहरण को रोकने की कोशिश अंतिम क्षणों तक की।
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पराक्रम
जटायु जी यदि चाहते तो अपनी वृद्धा अवस्था का बहाना दकर रावण को जाने दे सकते थे परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया और अंतिम श्वास तक पराक्रम किया।
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जटायु गलत का विरोध करते समय हार से न डरे
जटायु से हमें ये सीख मिलती है कि कर्म किए बिना पहले ही हार मान लेना सही नहीं है। मनुष्य को अपने अंतिम क्षण तक सफलता पाने के लिए प्रयास करना चाहिए।
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