महाभारत के युद्ध में न जाने कितने रिश्ते युद्ध की भेंट चढ़ गए। लेकिन एक रिश्ता ऐसा था जिसने मरते दम तक साथ नहीं छोड़ा वो रिश्ता था दोस्ती का।
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कमाल थी कर्ण और दुर्योधन की दोस्ती
कर्ण को महाभारत युद्ध से पहले ही यह पता चल गया था कि पांडव उनके भाई हैं। लेकिन फिर भी उसने दुर्योधन के साथ अपनी मित्रता निभाई और युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गया।
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भगवान कृष्ण और अर्जुन की मित्रता
महाभारत के युद्ध की बात सुनकर जब कृष्ण जी के भाई बलराम तीर्थयात्रा पर चले गए तो श्रीकृष्ण ने अर्जुन के सारथी बनकर पांडवों की सेना का मार्गदर्शन किया और युद्ध में विजय दिलाई।
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श्री कृष्ण ने अपने मित्र अर्जुन की जीत के लिए अपनी नारायणी सेना तक को कुर्बान कर दिया।
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सुशर्मा और दुर्योधन की मित्रता
सुशर्मा ने अर्जुन को रणभूमि से दूर करने हेतु युद्ध के लिए ललकारा। वो जानता था कि अर्जुन को ललकारने का मतलब मृत्यु है लेकिन फिर भी दुर्योधन के प्रति अपनी मित्रता निभाने के लिए उसने ऐसा किया और वो युद्ध करते हुए मारा गया।
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अश्वत्थामा और दुर्योधन की मित्रता
द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा और दुर्योधन की मित्रता भी गजब की रही। दुर्योधन ने मृत्यु को करीब देखते हुए अश्वत्थामा को कौरव सेना का प्रधान सेनापति बनाया।
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अश्वत्थामा ने अपनी मित्र की पराजय का लिया बदला
अश्वत्थामा ने अपने मित्र की पराजय और मृत्यु का बदला लेने के लिए रात के समय में पांडवों के शिविर पर हमला कर दिया और सोये हुए द्रौपदी के पुत्रों और धृष्टद्युम्न की हत्या कर दी।
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