Nov 28, 2023

Brahma Kumari Shivani: ब्रह्मा कुमारी शिवानी के अनमोल विचार

Jayanti Jha

​संतुष्ट आत्मा बनने का अर्थ​

संतुष्ट आत्मा बनने का अर्थ है सदा सत्य और सदाचार के मार्ग पर चलना। संतोष द्वारा सर्व दिव्य गुणों का आह्वान होता है।

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जीवन में अप्राप्ति या असंतुष्टि का कारण अंदर की कमियां या कमजोरियां ही हैं।

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संतोष सभी गुणों में सर्वोपरि है। जीवन में संतुष्टि है, तो सद्गुणों को अपनाना सहज है।

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​ सद्गुणों का वास​

जहां सद्गुणों का वास है, वहां दुर्गुणों का नाश हो ही जाता है। क्योंकि, असंतुष्टि अशांति व अवगुणों की जननी है।

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​ईश्वरीय ज्ञान,​

ईश्वरीय ज्ञान, गुण व शक्तियों की प्राप्ति, धारणा व उपार्जन से इंसान की सभी सदिच्छाओं व आवश्यकताओं की सहज पूर्ति हो जाती है।

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संतुष्ट आत्मा बनने का अर्थ है सदा सत्य और सदाचार के मार्ग पर चलना।

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​​सर्व दिव्य गुणों​

​संतोष द्वारा सर्व दिव्य गुणों का आह्वान होता है, जिससे सर्व अवगुणों की आहुति स्वत: हो जाती है।​

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आजकल लोगों के चेहरे पर सदा प्रसन्नता की झलक देखने को नहीं मिलती है।

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​इंसान कभी प्रसन्नचित्त है तो और कभी प्रश्नचित्त बन जाता है। ​

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​सम्पन्न होता है​

जो प्राप्तियों से सम्पन्न होता है, उसमें हलचल नहीं होती है। जो खाली होता है, उसमें हलचल होती है।

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