भगवत गीता के ये श्लोक हैं अडानी-अंबानी की सफलता का मूलमंत्र, आप भी जान लें
Laveena Sharma
कर्म पर ध्यान
कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों में कभी नहीं... इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो। कर्तव्य-कर्म करने में ही तेरा अधिकार है फलों में कभी नहीं। अतः तू कर्मफल का हेतु भी मत बन और तेरी अकर्मण्यता में भी आसक्ति न हो।
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कभी न करें क्रोध
क्रोध से मनुष्य की मति-बुदि्ध मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है, कुंद हो जाती है। इससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है।
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अच्छे कर्म
एक अच्छा इंसान अपनी अच्छाई द्वारा जो काम करता है, वह उसके वातावरण में फैलता रहता है। उसे देख कर आगे भी लोग उसी की तरह कार्य करने की कोशिश करते है।
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व्यक्ति का सबसे बड़ा मित्र और शत्रु
हमें खुद को ऊपर उठाना चाहिए न कि खुद को नीचे गिराना चाहिए। हम स्वयं ही स्वयं का खास मित्र होते है और स्वयं ही स्वयं का शत्रु भी बन सकते है।
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सबसे बड़ा धन
विद्या का धन रिश्तेदारों द्वारा नहीं लूटा जा सकता या चोरों द्वारा नहीं ले जाया जा सकता। दान से ज्ञान रूपी रत्न और महान धन कभी नष्ट नहीं होते।
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ज्ञान का स्थान सर्वोपरी
ज्ञान के समान कोई मित्र नहीं है और ज्ञान के समान कोई बंधू नहीं है। ज्ञान के समान कोई धन नहीं है, ज्ञान के समान कोई सुख नहीं है। कुल मिला कर आदर्श व्यक्ति के जीवन में ज्ञान का स्थान सर्वोपरी है।
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ऐसे होती है सुख की प्राप्ति
ज्ञान विनम्रता देता है और विनम्रता से व्यक्ति सुपात्रता की ओर जाता है। सुपात्र होने से उसे धन की प्राप्ति होती है और धन से धर्म और फिर सुख की प्राप्ति होती है।
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सबसे बड़े दान
गीता उपदेश अनुसार पृथ्वी पर मौजूद सभी दानों में कन्यादान, गोदान, भूमिदान, और विद्यादान सर्वश्रेष्ठ है।
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असली मनुष्य
जो आत्ममुग्ध और आत्मसंतुष्ट है वही असली मनुष्य है। दूसरी तरफ जो मनुष्य अपने आप में ही संतुष्ट है, उसके पास करने को कुछ नहीं है।
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