Sep 25, 2024
मिल्की-वे एक स्पाइरल आकाशगंगा है और रात के समय आसमान में देखने पर प्रकाश की एक दूधिया पट्टी सी दिखाई देती है। इसी वजह से हमारी आकाशगंगा का नाम मिल्की-वे पड़ा।
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मिल्की-वे के एक छोर से दूसरे छोर की दूरी लगभग एक लाख प्रकाश वर्ष है, जो मिल्की-वे का आकार या व्यास है।
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कुछ वक्त पहले वैज्ञानिकों ने मिल्की-वे के अंतिम छोर में 208 रहस्यमयी सितारों की खोज की थी। ऐसा माना जाता है कि ये सितारे कभी दूसरी आकाशगंगाओं के रहे होंगे, जो बाद में मिल्की-वे से मिल गए।
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मिल्की-वे का अंतिम छोर या यूं कहें मिल्की-वे के किनारे पर जब रहस्यमयी तारे खोजे गए थे तो वहां पर अत्यधिक मात्रा में डार्क मैटर की मौजूदगी का पता चला था।
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डार्क मैटर एक रहस्यमयी अंधेरा है, जिसे न तो देखा जा सकता है और न ही उसमें जाया जा सकता है। गुरुत्वाकर्षण की बदौलत उसके बारे में पता चलता है।
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ऐसा माना जाता है कि डार्क मैटर की वजह से हमारी घरेलू आकाशगंगा की संरचना एक डिस्क रूपी है यानी स्पाइरल है, क्योंकि डार्क मैटर के गुरुत्वाकर्षण की वजह से असंख्य सितारे और खगोलीय पिंड इत्यादि साथ आए हैं और गैलेक्सी बनी।
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मिल्की-वे के केंद्र में एक सुपरमैसिव ब्लैक होल है, जिसे सैजिटेरियस A* के नाम से जाना जाता है, जो हमारे सूर्य से 4.3 मिलियन गुना बड़ा है।
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आकाशगंगा में मौजूद तारों को गिनना लगभग असंभव है, लेकिन एक अनुमान के मुताबिक, हमारी गैलेक्सी में लगभग 100 अरब से 400 अरब तारे हैं। जिनमें से एक हमारा सूर्य भी है।
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