Sep 20, 2024
मुरथल के पराठे तो वर्ल्ड फेमस हैं। इनका स्वाद लेने लोग दूर-दूर से आते हैं। यहां आप चाहे वीकेंड पर चले जाएं या फिर वीकडेस पर हर टाइम अलग ही क्राउड रहता है।
Credit: canva
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असल में इसके पीछे एक धार्मिक कारण है। 19वीं सदी में मुरथल में संत बाबा कलीनाथ के आशीर्वाद के बड़े चर्चे थे।
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उसी समय 1956 में मुरथल में केवल दो ही ढाबे हुआ करते थे। संत बाबा कलीनाथ ने दोनों ही ढाबे को मांसाहार ना बेचने की सलाह दी थी।
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बाबा कलीनाथ का कहना था कि शाकाहारी बढ़िया खाना है। उनके अनुसार, जो मांसाहार बनाएगा या बेचेगा उसकी दुकान बंद हो जाएगी। उनके इस आदेश पर आज भी ढाबों पर मांसाहारी खाना नहीं बेचा जाता।
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मुरथल में सन 1950 में सीताराम का पहला ढाबा खुला फिर सन 1956 में अमरीक सुखदेव के पिता प्रकाश सिंह का ढाबा खुला।
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इन दोनों ने जब मांसाहार बेचने की कोशिश की तो एक माह में ही एक का ढाबा बंद हो गया और दूसरे को बहुत बड़ा नुकसान हुआ।
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अब मुरथल में स्वाद के शौकीन लोगों को मांसाहार के विकल्प के रूप में सोया चाप और पनीर की डिश दी जाती है।
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हालांकि, लोग यहां आकर मांसाहार नहीं शाकाहारी खाने की ही डिमांड भी करते हैं।
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