Aug 28, 2024

'अपनी तबाहियों का मुझे कोई ग़म नहीं..', दिल के जख्मों पर मरहम की तरह हैं साहिर के ये शेर

Suneet Singh

रोना आया

​हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को, ​क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया..​

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चेहरे

​देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से, ​चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से..​

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फूल

​हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें, ​वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं..​

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चला गया..

​ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ, मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया..​

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नजर

​ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है, क्यूँ देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम..​

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बे-दिली

तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम, ​ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम​

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मोहब्बत

​अपनी तबाहियों का मुझे कोई ग़म नहीं, ​तुम ने किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी​

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सिला

​आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलें, ​हम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं​

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अफसाना

​वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन, ​उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा।​

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