May 23, 2024
'कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त..', सुकून की संजीवनी हैं साहिर के ये शेर
Suneet Singh
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से, चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से।
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Ladies Purse Wala Political Baba
हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें, वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं।
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ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ, मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया।
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कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया, बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया।
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ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है, क्यूँ देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम।
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तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम, ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम।
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कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त, सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया।
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अपनी तबाहियों का मुझे कोई ग़म नहीं, तुम ने किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी।
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आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलें, हम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं।
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