Sep 12, 2024
दिल की उदासी पर गहरी चोट करती हैं साहिर की ये नज्में, मन हो जाएगा खुश
Suneet Singh
तू मुझे छोड़ के ठुकरा के भी जा सकती है, तेरे हाथों में मिरे हाथ हैं ज़ंजीर नहीं।
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मिठाइयों का शहर कौन?
दुनिया ने तजरबात ओ हवादिस की शक्ल में, जो कुछ मुझे दिया है वो लौटा रहा हूं मैं।
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मिलती है ज़िंदगी में मुहब्बत कभी-कभी, होती है दिलबरों की इनायत कभी-कभी।
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तुम अपना रंजओग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो, तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे दो।
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ऐ ग़म-ए-दुनिया तुझे क्या इल्म तेरे वास्ते, किन बहानों से तबीअ’त राह पर लाई गई।
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ये किस मक़ाम पे पहुँचा दिया ज़माने ने, कि अब हयात पे तेरा भी इख़्तियार नहीं।
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जान-ए-तन्हा पे गुज़र जाएँ हज़ारों सदमे, आँख से अश्क रवाँ हों ये ज़रूरी तो नहीं।
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लो आज हमने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उमीद, लो अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम।
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देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से, चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से।
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