Apr 22, 2025
मजरूह सुल्तानपुरी के 10 मशहूर शेर: हम तो आवाज़ हैं दीवार से छन जाते हैं..
Suneet Singh
पारा-ए-दिल है वतन की सरज़मीं मुश्किल ये है, शहर को वीरान या इस दिल को वीराना कहें
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अब कारगह-ए-दहर में लगता है बहुत दिल, ऐ दोस्त कहीं ये भी तिरा ग़म तो नहीं है
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मेरे ही संग-ओ-ख़िश्त से तामीर-ए-बाम-ओ-दर, मेरे ही घर को शहर में शामिल कहा न जाए
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मुझे ये फिक्र सब की प्यास अपनी प्यास है साकी, तुझे ये जिद कि ख़ाली है मिरा पैमाना बरसों से
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हर हाल में सुबह उठते ही ये चीज जरूर पीती...
गुड़ डालते ही फट जाती है चाय तो ना हों प...
सर पर हवा-ए-ज़ुल्म चले सौ जतन के साथ, अपनी कुलाह कज है उसी बाँकपन के साथ
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ज़बाँ हमारी न समझा यहाँ कोई 'मजरूह', हम अजनबी की तरह अपने ही वतन में रहे
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रोक सकता हमें ज़िंदान-ए-बला क्या 'मजरूह', हम तो आवाज़ हैं दीवार से छन जाते हैं
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अलग बैठे थे फिर भी आँख साक़ी की पड़ी हम पर, अगर है तिश्नगी कामिल तो पैमाने भी आएँग���
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बहाने और भी होते जो ज़िंदगी के लिए, हम एक बार तिरी आरज़ू भी खो देते
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