Apr 11, 2024

LKG और UKG के बच्चों से कैसे पेश आएं, भूल कर भी ना करें ये गलतियां

Suneet Singh

बच्चों की परवरिश

यूं तो बच्चों की परवरिश जीवन भर का टास्क होता है, लेकिन 3 से 5 साल तक के बच्चों की परवरिश काफी अहम है।

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LKG-UKG के बच्चे

यही वह उम्र है जब बच्चे पहली बार अपने माता-पिता से कुछ घंटों के लिए दूर होकर LKG या UKG में पढ़ने स्कूल जाते हैं।

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उदाहरण पेश करें पेरेंट्स

LKG-UKG में पढ़ने वाले 3 से 5 साल के बच्चे अपने आसपास से ज्यादा सीखते हैं। ऐसे में पेरेंट्स अगर चाहते हैं कि बच्चा गाली न दे, चीखे-चिल्लाए नहीं, सबका सम्मान करे, तो उन्हें खुद इसका उदाहरण बनना होगा।

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पूरा करें प्रॉमिस

इस उम्र के बच्चों से सोच-समझ कर कोई वादा कीजिए। अगर प्रॉमिस कर दिया हो, तो उसे पूरा जरूर करें। भले ही वह टॉफी देने जैसा छोटा वादा ही क्यों न हो।

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तय करें सीमा

यही वो उम्र होती है जब पेरेंट्स को बच्चों की सीमाएं तय करनी होती हैं। सीमाएं तय करना मतलब ये कतई नहीं होता कि हर बात में टोकना, लेकिन कितनी छूट मिले ये तय करना होगा।

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हौसलाअफजाई जरूरी

बच्चे की अच्छी बातों पर क्लैपिंग करके या तारीफ करके उसका मन रखें। बच्चे को ये फील ना होने दें कि वह हमेशा गलत ही करता है।

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हर जिद ना करें पूरी

कई बार पेरेंट्स छोटे बच्चों की हर बात पर हामी भर देते हैं। इससे बच्चा जिद्दी बन सकता है, ऐसा मत कीजिए। उनकी हर जिद पूरी मत कीजिए।

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जरूर सुनें बच्चे की बात

3 से 5 साल की उम्र ऐसी होती है जब बच्चे अपनी तोतली जुबान में बहुत कुछ कहना चाहते हैं। यह बेहद जरूरी है कि भले आप कितने भी व्यस्त हों, अगर बच्चा कुछ कहना चाह रहा है तो समय निकालकर उसे सुनिए जरूर। इससे बच्चों में कॉन्फिडेंस आता है।

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मोबाइल से रखें दूर

इस उम्र के बच्चों को मोबाइल वगैराह से जितना दूर रख सकें उतना रखें। यही वह उम्र है जह बच्चों पर मोबाइल का सबसे बुरा असर पड़ता है।

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