May 15, 2024
नहीं आती तो याद उन की महीनों तक नहीं आती, मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं।
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आईने में वो देख रहे थे बहार-ए-हुस्न, आया मिरा ख़याल तो शर्मा के रह गए।
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कहने को तो मैं भूल गया हूँ मगर ऐ यार, है ख़ाना-ए-दिल में तिरी तस्वीर अभी तक।
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देखने आए थे वो अपनी मोहब्बत का असर, कहने को ये है कि आए हैं अयादत कर के।
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ऐसे बिगड़े कि फिर जफ़ा भी न की, दुश्मनी का भी हक़ अदा न हुआ।
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और तो पास मिरे हिज्र में क्या रक्खा है, इक तिरे दर्द को पहलू में छुपा रक्खा है।
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मिरा इश्क़ भी ख़ुद-ग़रज़ हो चला है, तिरे हुस्न को बेवफ़ा कहते कहते।
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मुझ को देखो मिरे मरने की तमन्ना देखो, फिर भी है तुम को मसीहाई का दा'वा देखो।
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उस ना-ख़ुदा के ज़ुल्म ओ सितम हाए क्या करूं, कश्ती मिरी डुबोई है साहिल के आस-पास।
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