Sep 15, 2024
शाम से आँख में नमी सी है,आज फिर आप की कमी सी है।
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ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा,क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा।
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आइना देख कर तसल्ली हुई,हम को इस घर में जानता है कोई।
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वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर,आदत इस की भी आदमी सी है।
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आदतन तुम ने कर दिए वादे,आदतन हम ने ए'तिबार किया।
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जिस की आँखों में कटी थीं सदियाँ,उस ने सदियों की जुदाई दी है।
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कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है,ज़िंदगी एक नज़्म लगती है।
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हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते,वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते।
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कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था,आज की दास्ताँ हमारी है।
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