Apr 17, 2024
एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें,और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं।
Credit: Social-Media
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं, तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं।
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कोई समझे तो एक बात कहूँ, इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं।
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तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो,तुम को देखें कि तुम से बात करें।
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मौत का भी इलाज हो शायद,ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं।
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हम से क्या हो सका मोहब्बत में,ख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की।
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ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त,वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में।
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शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास,दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं।
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न कोई वा'दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद,मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था।
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