May 31, 2024
'अब तो उन की याद भी आती नहीं..', सीधे रूह को छूते हैं फिराक गोरखपुरी के ये चुनिंदा शेर
Suneet Singhकोई समझे तो एक बात कहूं, इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं।
तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो, तुम को देखें कि तुम से बात करें।
हम से क्या हो सका मोहब्बत में, ख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की।
शाम भी थी धुआं धुआं हुस्न भी था उदास उदास, दिल को कई कहानियां याद सी आ के रह गईं।
तेरे आने की क्या उमीद मगर, कैसे कह दूं कि इंतिज़ार नहीं।
आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में 'फ़िराक़', जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए।
अब तो उन की याद भी आती नहीं, कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयां।
रात भी नींद भी कहानी भी, हाए क्या चीज़ है जवानी भी।
कम से कम मौत से ऐसी मुझे उम्मीद नहीं, ज़िंदगी तू ने तो धोके पे दिया है धोका।
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