Oct 16, 2024
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के...दिलरूबा की यादों को ताजा कर देगी
Ritu raj
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा,राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा।
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दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है, लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है।
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कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब, आज तुम याद बे-हिसाब आए।
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और क्या देखने को बाक़ी है, आप से दिल लगा के देख लिया।
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दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के, वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के।
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तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं,किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं।
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नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही,नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही।
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वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था, वो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है।
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गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले, चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले।
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