May 22, 2024

'भुन जाता था जो गिरता था दाना ज़मीन पर..', पढ़ें गर्मी पर चंद बेहतरीन शायरी

Suneet Singh

गर्मी बहुत है आज खुला रख मकान को, उस की गली से रात को पुर्वाई आएगी।

- खलील रामपुरी

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बंद आँखें करूँ और ख़्वाब तुम्हारे देखूँ, तपती गर्मी में भी वादी के नज़ारे देखूँ।

- साहिबा शहरयार

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शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए, ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए ।

- राहत इंदौरी

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आते ही जो तुम मेरे गले लग गए वल्लाह, उस वक़्त तो इस गर्मी ने सब मात की गर्मी।

- नज़ीर अकबराबादी

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पड़ जाएँ मिरे जिस्म पे लाख आबले 'अकबर', पढ़ कर जो कोई फूँक दे अप्रैल मई जून।

- अकबर इलाहाबादी

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गर्मी से मुज़्तरिब था ज़माना ज़मीन पर, भुन जाता था जो गिरता था दाना ज़मीन पर।

- मीर अनीस

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तू जून की गर्मी से न घबरा कि जहाँ में, ये लू तो हमेशा न रही है न रहेगी।

- शरीफ कुंजाही

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शदीद गर्मी में कैसे निकले वो फूल-चेहरा , सो अपने रस्ते में धूप दीवार हो रही है।

- शकील जमाली

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गर्मियों भर मिरे कमरे में पड़ा रहता है, देख कर रुख़ मुझे सूरज का ये घर लेना था।

- गुलाम मुर्तजा राही

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