Apr 16, 2024
बुलंद हिम्मत से आसमाँ में शिगाफ़ हम से नहीं हुआ है,शिकस्त का भी अभी तलक ए'तिराफ़ हम से नहीं हुआ है।
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खड़े हुए हैं यहाँ तो बुलंद-हिम्मत लोग,थके हुओं को भला कौन रास्ता देगा।
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कितनी बुलंद हिम्मत हैं ज़िंदगी की नज़रें,टकरा रही हैं बढ़ कर अब वक़्त की नज़र से।
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हम बुलंद-हिम्मत हैं तेग़ से नहीं डरते,क़ातिलों की महफ़िल में सर उठा के जाएँगे।
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हिम्मत बुलंद थी मगर उफ़्ताद देखना,चुप-चाप आज महव-ए-दुआ हो गया हूँ मैं।
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हिम्मत है तो बुलंद कर आवाज़ का अलम,चुप बैठने से हल नहीं होने का मसअला।
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पीराना-सर भी शौक़ की हिम्मत बुलंद है,ख़्वाहान-ए-काम-ए-जाँ हैं जो उस नौजवाँ से हम।
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कैसे कहूँ कि आख़िरी अपनी उड़ान है,इस आसमाँ के बा'द भी इक आसमान है।
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ज़िन्हार हिम्मत अपने से हरगिज़ न हारिए,शीशे में उस परी को न जब तक उतारिए।
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