Apr 18, 2024
हौसला मत हार गिरकर ए मुसाफिर,अगर दर्द यहाँ मिला है तो दवा भी यहीं मिलेगी।
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नाज़ क्या इस पे जो बदला है ज़माने ने तुम्हें,मर्द हैं वो जो ज़माने को बदल देते हैं।
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ख्वाब भले टूटते रहे मगर “हौसले” फिर भी जिंदा हो,हौसला अपना ऐसा रखो जहाँ मुश्किलें भी शर्मिंदा हो।
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रास्ता सोचते रहने से किधर बनता है,सर में सौदा हो तो दीवार में दर बनता है।
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आसमां इतनी बुलंदी पे जो इतराता है,भूल जाता है ज़मी से ही नज़र आता है।
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जलाने वाले जलाते ही हैं चराग़ आख़िर,ये क्या कहा कि हवा तेज़ है ज़माने की।
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तू रख यकीन अपने इरादों पर,तेरी हार तेरे हौसलों से बड़ी नहीं होगी।
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पलट देते हैं हम मौजे-हवादिस अपनी जुर्रत से,कि हमने आँधियों में भी चिराग अक्सर जलाये हैं।
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अब हवाएँ ही करेंगी रौशनी का फ़ैसला, जिस दिए में जान होगी वो दिया रह जाएगा।
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न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा,हमारे पांव का कांटा हमीं से निकलेगा।
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