Oct 18, 2023
अक्सर कई मामलों दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालतें फैसला सुरक्षित रख लेती हैं। दोनों पक्ष अदालत को सभी तथ्यों के साथ लिखित में उपलब्ध करा देते हैं। फिर भी फैसला तुरंत नहीं सुनाया जाता है।
Credit: commons-wikimedia/BCCL
इसका मतलब है जज अब इस मामले में किसी तरह की सुनवाई नहीं करेंगे। मतलब अब फैसला सुनाएंगे। दोनों पक्षों को इस फैसले की लिखित कॉपी दे दी जाएगी।
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अदालत फिल्मी अदालतों की तरह तुरंत फैसला नहीं देते हैं। फैसला को सुरक्षित रख लिया जाता है। फैसला सुनाने के लिए कोई खास तारीख तय की जाती है।
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इसकी वजह है कि मामले में कोर्ट में महीनों या बरसों तक लंबी सुनवाई चलती है। सुनवाई में पेश की गईं सभी दलीलें और उसके फैक्ट को जानना होता है।
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कई महीनों या बरसों तक चले केस में फैसला दो चार लाइन या एक दो पेज में नहीं आता। कई बार ये हजारों पेज में होता है।
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सुनवाई के दौरान बहस की हर बातें जज से पास बैठे स्टेनोग्राफर लिखते हैं। फिर उसे पढ़ा जाता है।
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मामले में गवाहों के बयान, पक्ष-विपक्ष के वकीलों की दलीलों का मिलान किया जाता है।
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फैसला सुनाने से पहले पुलिस और जांच एजेंसियों की रिपोर्टों पर भी गौर किया जाता है।
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फैसला सुनाने से पहले कोर्ट को कानून के एक्ट और सेक्शन को लेकर भी मंथन किया जाता है।
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फैसला कानून के मुताबिक पूरी तरह सटीक है या नहीं, फैसले लिखने से पहले इस पर गौर किया जाता है।
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फैसला लिखने से पहले कई किताबें पढ़नी पड़ती हैं। दुनिया भर के नियम और फैसले पढ़ने होते हैं।
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जज की पूरी कोशिश होती है कि उनके तर्क कानून सम्मत और न्याय संगत हों इसलिए फैसला लिखने में अक्सर देर हो जाती है।
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