Jan 12, 2023
By: प्रशांत श्रीवास्तवहिंदू धर्म में विवाह विशेषाधिकार से ज्यादा कर्तव्य है।
पश्चिम विवाह को कानूनी बंधन के रूप में देखता है जबकि भारत में इसे समाज द्वारा दो लोगों को अनंत काल के लिए एक साथ जोड़ने का रुप माना जाता है।
विवेकानंद के अनुसार जिन देशों में शादी नहीं होती हैं, वहां पर दो लोगों के बीच कर्तव्य भी नहीं होता है।
विवाह एक संस्था है जो बहुत बेहतर तरीके से संरक्षित की गई है।
विवाह व्यक्तिगत सुख के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्र और जाति के कल्याण के लिए होता है
स्वामी वेकानंद बाल विवाह के सख्त विरोधी थी, और वह उस परंपरा को खत्म करने की बात कहते थे।
जिस प्रकार मनुष्य को सोचने और बोलने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, उसी प्रकार उसे भोजन, पोशाक, विवाह और अन्य सभी चीजों में स्वतंत्रता होनी चाहिए, जब तक कि वह दूसरों को हानि नहीं पहुंचाता है।स्रोत: विवेकवाणी
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