Oct 18, 2025
9वीं–10वीं सदी के आसपास चीन के ताओवादी साधुओं और रसायनज्ञों ने आग और विस्फोटक गुण वाले पदार्थों पर प्रयोग शुरू किए।
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बांस की खोखली ट्यूब में आग भरकर फटना — यही पहला 'फायरक्रैकर' माना जाता है, ताकि भूत-प्रेत दूर रहें और जश्न में शोर हो।
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नमकपेटी (saltpetre), कोयला और सल्फर का मिश्रण — यानी बारूद — अनजाने में विकसित हुआ, जिसने पटाखों को तेज़ी दी। (यहाँ रेसिपी नहीं बताई जा रही)।
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जंगल और बादल नहीं — रंग दूर-दूर की धातुएं देती हैं: कुछ धातु लाल, कुछ हरा और कुछ नीला रंग बनाते हैं — नूर और कला का विज्ञान।
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बारूद और पटाखों की तकनीक सिल्क-रोड और व्यापारियों के जरिए मध्य एशिया, अरब और फिर यूरोप पहुँची — वहां से यूरोपीय पायरोटेक्निक कला विकसित हुई।
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मध्ययुग और पुनर्जागरण में यूरोप ने पटाखों को होटल-शो और दैविक-राजसी उत्सवों का ग्लैमरस हिस्सा बना दिया — डिजाइन और प्रदर्शन कला मजबूत हुई।
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समय के साथ रसायन, इंजीनियरिंग और शो-डिज़ाइन ने मिलकर आधुनिक आतिशबाज़ी (fireworks displays) विकसित की — समय-प्रबंधन, रंग और आकृतियां सब सटीक हुईं।
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आज के बड़े-बड़े शहरों के सिटी-फेस्टिवल और न्यू ईयर-शो उच्च नियमों, परमिट और सुरक्षा मानकों के तहत होते हैं — मनोरंजन के साथ जिम्मेदारी भी जुड़ी है।
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पटाखे सिर्फ धमाका नहीं; वे जश्न, स्मृतियों और समुदाय का प्रतीक हैं — भविष्य में पर्यावरण-नज़रिए और ग्रीन क्रैकर्स की विकल्प भी तेजी से उभर रहे हैं।
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