Nov 17, 2022
नकली दवा बेचने के लिए रैकेट चलाए जा रहे है। रैकेट चलाने वाले नकली दवाएं बनाने का प्लान बनाया और कैंसर के इलाज में काम आने वाली नकली दवाएं बनाना शुरू किया, जिसे ये असली दवाओं के नाम पर 50% डिस्काउंट में मरीजों के परिवारों को बेचा जाता है।
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कैंसर की नकली दवाएं बनाने वाला गैंग कैसे काम करता था। ये गैंग दवाओं की Strips के ओरिजनल डिजायन को कॉपी करके Strips तैयार करते थे। इन्हें फिर देहरादून और नोएडा से प्रिंट करवाते थे। इन आरोपियों के साथी इन्हें खाली कैप्सूल और रॉ मैटेरियल सप्लाई करते थे। जिससे हरियाणा की फैक्ट्री में नकली दवाएं तैयार की जाती थीं। इसके बाद नकली दवाओं को गाजियाबाद के गोदाम में भेजा जाता था, जहां नकली दवाओं की फाइनल पैकेजिंग और सप्लाई होती थी।
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दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने एक ऐसे गैंग को पकड़ा है जो कैंसर की नकली दवाएं बना रहे थे और उन्हें बाजार से कुछ कम कीमत पर बेच भी रहे थे। कैंसर की दवाएं बहुत महंगी आती है। इन दवाओं इस गिरोह के लोग इसी बात का फायदा उठाकर सस्ते दाम का ऑफर देते थे और नकली दवाएं बेच रहे थे इस काम के लिए एक पूरा स्मार्ट नेटवर्क सिस्टम तैयार किया गया था। जिसमें पढ़े- लिखे प्रोफेशनल लोगों की पूरी टीम बनाई गई थी। दिल्ली पुलिस ने इस गिरोह में शामिल एक डॉक्टर समेत 7 लोगों को गिरफ्तार किया है। इन लोगों से 8 करोड़ रुपए की कीमत वाली 20 अंतरराष्ट्रीय ब्रांड की कैंसर की दवाइयां बरामद की हैं।
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कैंसर के इलाज में कई दवाएं बहुत महंगी होती हैं, जो रोगी की सेहत के अलावा परिवार की आर्थिक सेहत भी खराब कर देती हैं, घर का बजट बिगड़ जाता है। एक तरफ मरीज की चिंता और दूसरी तरफ महंगी दवाइयों की मार। इसलिए कैंसर मरीज या उसके परिवार को लगता है कि अगर दवा कुछ सस्ती मिल जाए तो थोड़ी राहत हो जाएगी। इस गैंग के लोग इसी मजबूरी का फायदा उठा रहे थे।
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अब आपको उन दवाओं के नाम बताता हूं जिनकी हूबहू नकली दवा इस गैंग के लोग बेच रहे थे। जो लोग ये दवाएं ले रहे हैं वो बहुत सावधानी से देखें.... इनमें पहली दवा है। Tagrisso 80mg Tablet, ये lung cancer यानी फेफड़ों के कैंसर के इलाज में दी जाती है। इस दवा को ब्रिटन की एक कंपनी AstraZeneca बनाती है। 10 पत्ते की इस दवा की असली कीमत है। 2 लाख 4 हजार 435 रुपए यानी एक गोली की कीमत 20 हजार 443 रुपए है। इस गैंग के लोग इसकी नकली दवा को डेढ़ लाख रुपए का ऑफर देकर बेचते थे। मरीज को लगता था कि 50 हजार रुपये सस्ती मिल रही है।
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महिलाओं में होने वाले Ovarian Cancer के लिए एक दवा आती है। जिसका नाम है Olanib 150 Mg इसे Everest Pharma नाम की दवा कंपनी बनाती है। इस दवा के 120 capsules की एक bottle की कीमत 75 हजार रुपए हैं। एक और दवा है Tagrix 80 Mg, ये दवा कैंसर सेल को बढ़ने से रोकती है। इसे Beacon नाम की कंपनी बनाती है। इसके 30 गोली के पत्ते की कीमत है 23 हजार 500 रुपए है। एक दवा है Osicent 80mg, ये दवा भी lung cancer में काम आती है। इस दवा को INCEPTA PHARMACEUTICALS LIMITED बनाती है, इसकी 30 Tablet की कीमत है करीब 12 हज़ार रुपए है। Leukemia यानी Blood Cancer की एक दवा है। Ventoxen 100 mg, इसे भी INCEPTA PHARMACEUTICALS LIMITED बनाती है। इसकी 60 Tablet की कीमत है 40 हजार रुपए। इतनी महंगी दवाओं को सस्ते में बेचने के ऑफर में बहुत से मरीज फंस गये और नकली दवाएं खा गए।
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कैंसर की नकली दवा बेचने वाले लोग, पूरी रिसर्च के साथ इस काम में उतरे थे, आज आपको कैंसर से जुड़े आंकड़े बता देता हूं जिसकी वजह से नकली दवा से जुड़ा अपराध किया जा रहा है। भारत में करीब 2 करोड़ 67 लाख कैंसर के मरीज हैं जो हर साल करीब 2 हज़ार 153 करोड़ रुपए की दवा खाते हैं , इसमें एक हिस्सा नकली दवाओं से जुड़ा हुआ है।
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अगर पूरे देश में नकली दवाओं का आंकड़ा देखें तो 2019 में US Trade Representative office की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बिकने वाली 20% दवाएं नकली हैं (2019 की रिपोर्ट)। ये करीब 80 हजार करोड़ रुपए का कारोबार है। भारत में कुल दवा इंडस्ट्री करीब 4 लाख करोड़ रुपए की है। भारत दुनिया के सबसे बड़े दवा उत्पादक देशों में से एक है। ऐसे में नकली दवा का कारोबार रोकना बहुत बड़ी चुनौती है। इसके अलावा 2018 में Central Drug Standard Control Organization ने अनुमान बताया था कि भारतीय मार्केट में जेनेरिक दवाओं में 4.5% दवाएं substandard यानी घटिया क्वालिटी की हैं।
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कोरोना में तो नकली दवाएं मार्केट में और बढ़ गई थीं। फेक मेडिकल प्रोडक्ट्स के खिलाफ काम करने वाली संस्था Authentication Solution Providers Association यानी ASPA की रिपोर्ट के मुताबिक 2020 से 2021 के दौरान मार्केट में substandard और falsified दवाएं-उपकरण यानी खराब क्वॉलिटी और नकली दवाएं और उपकरण 47% बढ़ गए थे। इसमें कोरोना के इलाज से जुड़ी नकली दवाएं, नकली वैक्सीन, नकली टेस्ट किट्स, नकली एंटीबायोटिक, नकली सेनेटाइजर शामिल थे। इस रिपोर्ट के मुताबिक देश के 23 राज्यों में नकली दवाएं पाए जाने के मामले मिले थे। यानी नकली दवाएं बनाने वालों ने महामारी को बड़ा मौका बनाया था।
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देश में बढ़ती नकली दवाओं के कारोबार को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने 300 तरह की दवाओं पर QR कोड लगाना अनिवार्य कर दिया है , जिससे असली और नकली दवा की पहचान की जा सकती है। जैसे आप मोबाइल से QR कोड स्कैन करके पैमेंट करते हैं वैसे ही दवा को स्कैन करके उससे जुड़ी सारी जानकारी मिल जाएगी, ये सुविधा कई दवा कंपनियों ने अपनी दवाओं पर शुरू भी कर दी है लेकिन अगले साल 1 जनवरी 2023 से ये सुविधा इन कंपनियों लागू करनी होगी।
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