Nov 9, 2023
विक्की कौशल की फिल्म "सैम बहादुर" Sam Manekshaw की वास्तविक जीवन की कहानी है।
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लंबी चौड़ी कद काठी, ऐसी कड़क आवाज जो पूरी तरह से थके व मरणासन्न अवस्था वाले जख्ती सिपाही में भी जोश भर दें। ऐसे थे देश के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ
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सैम मानेकशॉ का जन्म 1914 में पंजाब के अमृतसर में हुआ। वे 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष थे। भारत की जीत का कर्ता धर्ता भी सैम मानेकशॉ को माना जाता है।
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सैम मानेकशॉ 1932 में ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हुए, चूंकि तब तक भारत स्वतंत्र नहीं था, इसलिए उस समय की सेना को ब्रिटिश भारतीय सेना कहा जाता था।
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सैम मानेकशॉ ने द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर पांच युद्ध लड़े। उन्होंने 1947 के भारत-पाक युद्ध, 1962 के भारत-चीन युद्ध और 1971 के भारत-पाक युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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सैम मानेकशॉ को 'बहादुर' उपनाम 8वीं गोरखा राइफल्स के सैनिकों द्वारा दिया गया था, जहां उन्हें 1947 में स्वतंत्रता के बाद फिर से नियुक्त किया गया था।
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उनके योगदान के लिए उन्हें पद्म विभूषण, पद्म भूषण और मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया गया। उनका करियर चार दशकों तक चला, 94 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
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सैम मानेकशॉ व पीएम इंदिरा के बीच अच्छे व घनिष्ठ संबंध थे। माना जाता है उन्होंने तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी को एक बार स्वीटी व लड़की कहकर संबोधित किया था।
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एक बार इंदिरा गांधी को संदेह हुआ कि सैम मानेकशॉ उनका तख्तापलट कर सकते हैं। इसलिए उन्होंने सैम मानेकशॉ को चाय पर बुलाकर इस बारे में सीधे पूछ लिया।
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इस पर सैम मानेकशॉ का जवाब था 'जब तक मैं आर्मी को बिना किसी हस्तक्षेप के कमांड कर रहा हूं तब तक मेरा न राजनीति में आने का इरादा है और न तख्तापलट का
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