Sep 26, 2023
दूसरी तरफ दोनों राज्यों के नेताओं के बीच भी बयानबाजी चल रही है। यह मुद्दा इतना गर्मा गया है, कि बेंगलुरु बंद की घोषणा कर दी गई।
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कर्नाटक और तमिलनाडु दोनों राज्यों में यह विवाद ब्रिटिश हुकूमत के समय से चला आ रहा है, और अभी तक इसका हल नहीं निकल पाया है।
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इस विवाद की शुरुआत 1892 और 1924 में तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर साम्राज्य के बीच हुए दो समझौतों से मानी जाती है। आजादी से पहले हुए इन समझौतों को कर्नाटक मानने से इंकार करता है।
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कर्नाटक का तर्क है कि ये समझौते मद्रास प्रेसीडेंसी (तमिलनाडु का हिस्सा) के पक्ष में है। कर्नाटक न्यायसंगत आधार पर कावेरी नदी जल के बंटवारे की मांग कर रहा है।
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इस सहमति के तहत 44.8 हजार मिलियन क्यूबिक फीट जल का संग्रहण करने के लिए मैसूर को कन्नामबाड़ी गांव पर एक बांध बनाने की इजाजत मिली। इस करार को 50 सालों तक वैध माना गया।
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जल के विवाद का यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में कई बार उठा, लेकिन शीर्ष अदालत से भी इस विवाद का स्थायी समाधान अभी तक नहीं हो पाया है।
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हल निकालने के लिए सरकार ने कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण (CWDT) का गठन किया। CWDT ने अपने एक अहम फैसले में कर्नाटक को मासिक/ साप्ताहिक आधार पर तमिलनाडु को 205 मिलियन क्यूबिक फीट जल छोड़ने का आदेश दिया।
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तमिलनाडु को पानी छोड़ने के आदेश के बाद कर्नाटक की सरकार ने इसका अनुपालन करने में असमर्थता जाहिर की है। कर्नाटक में कांग्रेस नेताओं का कहना है कि कावेरी नदी में इतना पानी नहीं है कि वे तमिलनाडु को जल छोड़ सकें।
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बता दें कि कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (CWMA) ने कर्नाटक सरकार को 5,000 क्यूसेक पानी तमिलनाडु को छोड़ने का निर्देश दिया है। इस निर्देश के खिलाफ कर्नाटक सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची, लेकिन कोर्ट ने दखल देने से इंकार कर दिया
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पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा ने 25 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अपील की कि वह कावेरी नदी क्षेत्र के सभी जलाशयों के अध्ययन के लिए कोई बाहरी एजेंसी नियुक्त करने का जल शक्ति मंत्रालय को निर्देश दें।
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