9 नवंबर को तुलसी विवाह का दिन है। इस दिन मां तुलसी और शालीग्राम का विवाह किया जाता है। तुलसी विवाह के लिए इस दिन मां को दुल्हन की तरह ही सजाया जाता है। सुहाग का सामान और लाल चुनरी ओढ़ाकर मां की पूजा की जाती है और फिर विवाह की रस्में पूरी की जाती हैं। तुलसी विवाह घर में सुख-शांति और उल्लास लेकर आता है।
साथ ही विवाह करने वाली सुहागिनों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन विधिवत विवाह करने से घर में साकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नाकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है। जिस घर में तुलसी होती हैं वहां प्रसन्नता का वास होता है। पूरे कार्तिक मास में शाम को तुलसी के समक्ष दीप जरूर जलाना चाहिए। तो आइए तुलसी विवाह पर तुलसी विवाह की कथा भी सुनें।
जलंधर असुर से मुक्ति के लिए विष्णु भगवान से देवताओं ने मांगी थी मदद
जलंधर नाम के असुर के वध के लिए भगवान विष्णु ने एक छल किया था और इस छल के पीछे वजह देवताओं और संयासियों पर हो रहे अत्याचार से मुक्त कराने के लिए ही किया था। कथा इस प्रकार है कि जलंधर का विवाह वृंदा नाम की एक लड़की से हुआ था और वृंदा भगवान विष्णु की भक्त थीं। बेहद धार्मिक और दयावान वृंदा पतिव्रता भी थीं और इसी कारण जलंधर को अजेय का वरदान मिल गया लेकिन जलंधर बेहद ही घमंडी, अत्याचारी और देवताओं और साधु सन्यासियों पर अत्याचार करने वाला था। वह स्वर्ग की अप्सराओं को भी तंग करता था। इस परेशानी को लेकर सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे और मदद की गुहार की।
असुर वध के लिए भगवान विष्णु ने किया था छल
भगवान विष्णु ने देवताओं की मदद करने की तो ठान ली लेकिन उन्हे पता था कि जलंधर को तब तक नहीं मारा जा सकता जब तक कि वृंदा की पवित्रता को नष्ट न किया जा सके। इसलिए भगवान विष्णु ने एक छल किया। जलंधर उस वक्त युद्ध में था और वृंदा पूजा में तब तक बैठी रहने वाली थीं जब तक कि जलंधर युद्ध करता रहता, लेकिन भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण कर वृंदा की पूजा भंग कर दी और वह पति को देख पूजा से उठ गई। उधर जलंधर युद्ध में शक्तियां कम हो गईं और वह मारा गया।
वृंदा ने श्राप दे कर पत्थर बना दिया भगवान को
वृंदा को जब भगवान के छल का पता चला तो वह भगवान विष्णु को पत्थर हो जाने का श्राप दे दिया। श्राप दिए जाने से देवता घबरा गए और वृंदा से श्राप मुक्ति के लिए प्रार्थना की। हालांकि वृंदा ने भगवान को श्रापमुक्त तो कर दिया लेकिन खुद अग्नि कुंड में कूद गईं।
भगवान ने राख से बना दी तुलसी
वृंदा ने खुद को अग्नि में भस्म कर लिया तो भगवान विष्णु ने वृंदा की राख को एक तुलसी के पौधे में बदल दिया। साथ ही वरदान दिया कि उनकी पूजा के साथ अब तुलसी की पूजा भी तब तक होगी और वह उनकी पत्नी मानी जाएंगी।